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डॉ. कमला सेल्वराज - बांझपन के उपचार के क्षेत्र में अग्रणी

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डॉ. कमला सेल्वराज एम डी, डी जी ओ, पी एच डी कोई साधारण प्रसूति शास्री नहीं हैं, जो गर्भावस्था और प्रसव की दिनचर्या के मामलों से निपटने के साथ ही संतुष्ट हो जाती हैं। अपने मेडिकल कैरियर/पेशे के शुरू में ही, उन्होने तय कर लिया था कि उनका उद्देशय, हजारों निःसंतान महिलाओं को मातृत्व की परम संतुष्टि देने का हैं और अपनी इसी उच्च उपलब्धि पर अंतर्दृष्टि रख कर, वे अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर हुई। रवीन्द्रनाथ टैगोर ने कहा हैं - "हर एक बच्चा इस संदेश के साथ आता हैं कि भगवान अभी तक मानव जाति से हतोत्साहित नहीं हैं ।"

डॉ. कमला सेल्वराज एक पथप्रदर्शक हैं। उन्हें श्रेय जाने वाले अग्र कामों की सूची में से कुछ उल्लेखनीय काम:

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  • 1990 में दक्षिण भारत में पहले टेस्ट ट्यूब बेबी का सफल प्रयोग करने वाली प्रथम डॉक्टर।
  • 1992 में - सबसे पहले उनकी क्लिनिक में ओसाइट फैलोपियन ट्यूब ट्राँसफर (सॉफ्ट) का प्रयोग हुआ (प्रयोग शाला में शुक्राणु और अंडक को डिम्बवाही नली में रख कर अंडे को 2-3 घंटे सेने के लिये रखा जाता हैं, उसके बाद उसे गर्भ मे प्रस्थापित कर देते हैं)
  • 2008 में - पहला फ्रोजन जमे हुये अंडे से (ओसाइट) बच्चा पैदा हुआ।
  • दक्षिण पूर्व एशिया में पहली बार, उनकी देखभाल के अंतर्गत मेयर-रोकिन्तांसकी-कस्टनर-हौसर सिंड्रोम से ग्रस्त मरीज को एक सरोगेट के माध्यम से जुड़वाँ बच्चे पैदा हुए ।

    ( मेयर-रोकिन्तांसकी-कस्टनर-हौसर सिंड्रोम:- इस रोग से ग्रस्त स्त्रीयों में बच्चेदानी और योनि अविकसित होती हैं । ये पूरी तरह से स्त्री होती हैं, लेकिन मासिक धर्म न होने से, वे माँ नहीं बन पाती हैं।)



डॉ. कमला सेल्वराज दक्षिण भारत की पहली टेस्ट ट्यूब बेबी के साथ उसके 18 वे जन्मदिन के अवसर पर

मेड़ इंड़िया, चेन्नई, भारत, ने डॉक्टर से उनके विशाल जी जी अस्पताल में, जो कि उच्च तकनीकी बुनियादी सुविधाओं से सुसज्जित हैं, उसके इनविट्रो निषेचन (आई वी एफ) प्रयोगशाला में मुलाकात की और बांझपन के क्षेत्र में उनके प्रारंभिक संघर्षों और उपलब्धियों के बारे में सुना।

क्या कोई खास बात थी, जिसने आपको असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेकनीक (ए आर टी) सहायक प्रजननीय तकनीक की खोज करने के लिये प्रेरित किया?

मैं माता-पिता और दादा-दादी के साथ एक संयुक्त परिवार में पली बढ़ी। मैं मेरी संकोची पड़ चाची दादी चिनम्मा से बहुत ज्यादा जुड़ी हुई थी, जिसने जीवन में कभी भी किसी चीज़ की कामना नहीं की थी, शायद इसलिए क्योंकि वह निःसंतान थी। मैं अक्सर सोचा करती थी कि उनके साथ क्या गलत हो गया था और क्या उन्होने या उनके पति ने कभी किसी डॉक्टर से परामर्श लिया होगा या नहीं? जब मैंने अपना फर्टिलिटी रिसर्च सेंटर शुरू किया और प्रारम्भिक विकास चरण में जब मैं कई मुद्दों से जूझ रही थी, तब जब भी मेरा मनोबल कमजोर होने लगता, उनका मुझ में अड़िग आत्मविश्वास मुझ में स्थितीयों से लङ़ने का अदम्य साहस भर देता था। मेरी पहली टेस्ट ट्यूब बेबी के जन्म के कुछ साल पहले ही उनकी मृत्यु हो गयी। इस बात का मुझे बहुत दुःख हैं कि मेरी सफलता में वे मेरे साथ नहीं थी।



करीब 25 साल पहले बांझपन के इलाज का उपक्रम एक साहसिक कठिन परीक्षा रही होगी । आपने इसे कैसे संभाला?

वह बहुत ही कठिन समय था और हर दिन मेरे लिए कुछ नया सीखने के लिये लाता था। ज्यादातर सब कुछ मैंने अपने आप से ही किया और सीखा हैं। एक तो मैं बहुत ही कम बजट पर काम कर रही थी। इसके अलावा, मैं एक आदर्श निपुर्णता में विश्वास करती हूँ। मेरा मानना हैं कि यदि आप एक सही निर्धारित नियमों/प्रोटोकॉल का पालन नहीं करते तो आप कुछ भी करने में सफल नहीं हो सकते - टेस्ट ट्यूब बच्चों को बनाने की बात तो छोड़ ही दें!

आप ए आर टी की प्रक्रियाओं की बारीकियों में कहां से शुरू हुए और अभ्यास में प्रशिक्षण को डालना कितना मुश्किल रहा था?

मैं एक बहुत ही परंपरागत दक्षिण भारतीय परिवार से हूँ और मुझे अपने माता-पिता और मेरे पति का समर्थन था जो एक चिकित्सक भी हैं । मेरे इन विट्रो फर्टिलाइजेशन और भ्रूण स्थानांतरण (आई वी एफ-ईटी), के क्षेत्र में मार्गदर्शन के अनुरोध पत्र के जवाब में, डॉ. कार्ल ब्राउन ने मुझे मोनाश विश्वविद्यालय, मेलबोर्न, ऑस्ट्रेलिया 1985 में उनकी कार्यशाला में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया । जिसके बाद मैंने अन्य अंतरराष्ट्रीय कार्यशालाओं और सम्मेलनों में भी भाग लिया।

अमेरिका में गैमेट इंट्रा फैलोपियन ट्रांसफर (जी आई फ टी/GIFT) प्रक्रिया सीखा, घर पर चूहों का प्रजनन किया (केवल यदि चूहों का भ्रूण मिश्रित कल्चर मीडियम मे ब्लास्टोसिस्ट चरण तक विकसित होता हैं, तो मानव ओसिट के लिए उपयुक्त माना जाता हैं), बड़ी मेहनत से मुंबई के डॉ. फरीम ईरानी की मदद से इन विट्रो निषेचन प्रयोगशाला की स्थापना की, प्रयोगात्मक अवधि से ले कर अंतिम सफलता तक जब टेस्ट ट्यूब बेबी का सपना सच हुआ .... कुछ भी आसानी से नहीं आया था।




टेस्ट ट्यूब बच्चों के लिए परीक्षण


आपके अस्पताल में इलाज के लिए दुनिया के हर कोने से लोग आ रहे हैं। मोटे तौर पर एक आईवीएफ प्रक्रिया का कितना खर्च आता हैं?

एक पूरी आईवीएफ प्रक्रिया मे कमरे का खर्च, इंजेक्शन आदि के साथ, मामले की गंभीरता पर निर्भर करते हुए 1.5 लाख रुपये से 1 लाख रुपये (($ 2000- $ 3000 / 1400-3000 पाउंड) का खर्च आएगा|

ए आर टी प्रक्रियाओं के इस क्षेत्र में आप आगे और क्या प्रगति देख रहे हैं?

हमें विट्रीफिकेशन तकनीक के माध्यम से अपनी दूसरी गर्भावस्था मिली हैं। अब हम रैपिड़ (विट्रीफिकेशन) और ओसिट की स्लो फ्रीजिंग, डिम्बग्रंथि ऊतक जमने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं और हम स्टेम सेल थेरेपी में अनुसंधान करने की उम्मीद करते हैं।


डॉ. कमला सेल्वराज प्रयोगशाला में

आजकल दुनिया भर में बांझपन में वृद्धि का प्रचार मीडिया( संचार माध्यम) बड़े जोर शोर से कर रहा हैं। यह सिर्फ प्रचार है या बांझपन सच में वृद्धि में हैं? अगर ऐसा हैं तो किन कारणों से यह संभव हुआ हैं?

तनाव और एक व्यस्त जीवन, दुनिया भर में बांझपन पैदा कर रहे हैं। इसके अलावा, बदलती जीवन शैली, जहां पुरुष और महिला दोनों ही नौकरी उन्मुख होते हैं, देर से विवाह, परिवार नियोजन, गर्भपात, अंतर्गर्भाशयी उपकरणों का उपयोग आदि कुछ मुख्य कारण हैं। अन्य कारण, जैसे कीट नाशकों का प्रभाव, पुरुषोंमें वीर्य की कमी, पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम (बहुपुटीय गर्भाशय के लक्षण), प्रीमेच्योर ओवेरियन फेलियर (समय से पूर्व गर्भाशय की असफलता) और आनुवंशिक कारण से भी यह स्थिति होती हैं।

आपके पेशे /कैरियर के कुछ यादगार मार्मिक क्षण..

निश्चित रूप से, सबसे मार्मिक क्षण 2004 में दक्षिण भारत में सुनामी के कहर के बाद के हैं। ज्यादातर निचले सामाजिक आर्थिक समूह की महिलाएं जो वंध्यीकृत(बच्चेदानी को निकाल दिया हो) थी और जब, लहरों ने उनके घरों को ध्वस्त किया तो उन्होंने अपने सारे बच्चों को खो दिया था| अनेक संस्थाओ ने विभिन्न सेंटरो में विफल इलाज के बाद, इन महिलाओं को ए आर टी के लिए हमारे प्रजनन केंद्र पर भेजा। जोड़ों को अपने नवजात शिशुओं से चिपके हुए देखना, एक बहुत ही भावुक अनुभव था, जैसे की इस रूप मे उन्हें कोई नया जीवन दे दिया गया हो। एक नीति के अनुसार हमारे हॉस्पिटल मे सुनामी पीड़ितों को ए आर टी उपचार पूरी तरह से मुफ्त दिया गया था|

भारत जैसे परंपरागत देश में जहाँ अभी भी संतानहीनता को एक अभिशाप के रूप में देखा जाता हैं। डॉ. कमला सेल्वराज उन संतानहीन युगलों के लिए एक आशा की किरण हैं, जो उनके बंजर जीवन मे फूल खिलाती हैं। मेड़ इंडिया उनके इन अकथ प्रयासो के लिये उनकी सराहना करता हैं और इस मुहिम में अधिक सफलता की कामना करता हैं ।

स्रोत: मेड इंडिया

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