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बच्चों से बात करते समय माता-पिता से होने वाली सामान्य गलतियाँ

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बच्चों से बात करते समय पालन-पोषण की सबसे आम गलतियाँ क्या हैं?

परवरिश दुनिया के सबसे चुनौतीपूर्ण कामों में से एक है। यह खेदजनक हैं कि माता-पिता बनने के लिए किसी योग्यता की आवश्यकता नहीं है। माता-पिता बनना एक जीवन का महत्वपूर्ण चरण है, लेकिन इसमें लोग सिर्फ इसलिए प्रवेश करते हैं, क्योंकि वे एक निश्चित उम्र के हैं और उन्हें अपने वंश को बढ़ाना हैं। इसलिये वे बिना विचार किए हुये हैं कि एक योग्य माता पिता बनने के लिए बहुत कुछ करना होता हैं, इस चुनौती को मान लेते हैं।

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करीब 28.2% बच्चे और किशोर मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से पीड़ित हैं, इसका मुख्य कारण है व्यग्रता का विकार, जो कि पालन-पोषण के अनेक गलत तरीकों में से एक महत्वपूर्ण कारक है।

बच्चों को संभालने में माता-पिता के दृष्टिकोण को बच्चे की ज़रूरतों के अनुकूल बनाने की आवश्यकता है। "बच्चों से कैसे बात करें?" इस पर माता-पिता और स्कूलों के शिक्षकों के लिए कार्यशाला आयोजित करने की आवश्यकता है। इस तरह की पहल से दीर्घकालिक दुष्प्रभावों को रोका जा सकता है। आइए समझते हैं माता-पिता द्वारा अस्वास्थ्यकर बातचीत बच्चों को कैसे प्रभावित कर सकती है।

ऐसे अनेक तौर- तरीके हैं, जिनसे माता-पिता द्वारा बच्चों को अनजाने में पीड़ा देने वाली अस्वास्थ्यकर बातचीत हो जाती हैं और वे हैं:

  • आलोचना - जिस तरह से विषय संबंधित शब्दावली का किया जाता है, वह बहुत महत्वपूर्ण है। जब माता-पिता अपने बच्चे के सोचने या महसूस करने के तरीके के लिए उसकी आलोचना करते हैं, तो बच्चे में आत्म-संदेह विकसित होने की संभावना होती है और उनके आत्म-विश्वास में कमी आ जाती हैं।
  • रक्षात्मकता - ऐसे समय होते हैं, जब माता-पिता अपना वादा पूरा नहीं कर पाते हैं। ऐसे समय, उन्हें अपने बचाव में रक्षात्मक होने के बजाय जिम्मेदारी लेनी चाहिए।
  • अवमानना करना - इसमें कटाक्ष, नाम-पुकार, उपहास और ताना मारना शामिल है। इससे बच्चा अपने को बेकार या असमर्थ महसूस कर सकता है।
  • पत्थर की दिवार खड़ी करना - माता-पिता बच्चे की स्थिति न समझते हुये उनसे बात करना पूरी तरह से बंद कर देते ।
  • अस्वीकार करना - इस स्थिति में माता-पिता इसमें विचार नहीं करते है कि बच्चा क्या कहता है।
  • असहयोग या दिवार खड़ी करना- इस स्थिति में बच्चे अपनी पीड़ा को छुपाने के लिये अपने चारों ओर एक काल्पनिक दिवार खड़ी कर लेते हैं और सहयोग देना बंद कर देते हैं। यह स्थिति बहुत ही भयावह होती हैं और इस मानसिक कैद से बच्चे को बाहर निकालना बेहद मुश्किल होता हैं। ।
  • उपनाम रखना या लेबलिंग - किसी बच्चे को बुरा या बेवकूफ के रूप में लेबल करने से बच्चा खुद का नकारात्मक मूल्यांकन कर सकता है।
  • व्यस्तता - बात करते समय उचित ध्यान न देना या न सुनना इससे बच्चे अनसुना महसूस कर सकते है।
  • अस्पष्टता - जब माता-पिता स्पष्ट रूप से संवाद नहीं करते हैं, तो बच्चे पूरी तरह से गलत समझ सकते हैं ।
  • भाषण देना - बच्चों की ध्यान देने की अवधि कम होती है। अत्यधिक बात करने से बच्चे बात केवल सुनते भर हैं, उनके सिर के ऊपर से शब्द निकल जाते हैं ।
  • तुलना करना - बच्चों की भाई-बहन या अन्य बच्चों से तुलना करना घातक हो सकता है। बच्चें अवांछित और अयोग्य महसूस कर सकते है। ऐसा व्यवहार सहोदर प्रतिद्वंद्विता को बढ़ावा दे सकता है।
  • धमकाना और आलोचना करना - बच्चों की बार-बार आलोचना करने, उनसे झूठ बोलने या उन्हें नियंत्रित करने के लिए भावनात्मक रूप से ड़राने, धमकाने या ब्लैकमेल करने के कई हानिकारक प्रभाव हो सकते हैं। इस स्थिति में बच्चे अपनी पीड़ा को छुपाने के लिये और अपराध-बोध होने के कारण, वे अपने चारों ओर एक काल्पनिक दिवार खड़ी कर लेते हैं और सहयोग देना बंद कर देते हैं। यह स्थिति बहुत ही भयावह होती है।
  • चिल्लाना और टोकना - ऊंची आवाज का उपयोग करना या बच्चों को लगातार टोकना, बात काटना आदि व्यवहार, उनकी बातचीत की क्षमता में बाधा उत्पन्न कर सकता है। इससे वे निष्क्रिय हो सकते हैं।
  • हाव भाव के तरीके या बॉडी लैंग्वेज - बच्चे न सिर्फ शब्द सीखते हैं, बल्कि वे माता-पिता की हाव भाव के तरीके पर भी खासा ध्यान देते हैं। निराशा के लक्षण जैसे पैर थपथपाना, आहें भरना, नाक-भौं चढ़ाना या अपनी आँखें धुमाना, बच्चों द्वारा गलत समझा जा सकता है।

अप्रयोजनात्मक संवाद के प्रभाव क्या हैं?

अप्रयोजनात्मक संवाद के प्रभाव लंबे समय तक चलने वाले और हानिकारक होते हैं, जैसा कि नीचे देखा जा सकता है:

  • चिंता और अवसाद
  • व्यवहार संबंधी समस्याएं
  • आत्मसम्मान में कमी
  • मतभेद या अक्सर टकराव
  • तनाव और चिंता करना
  • मादक द्रव्यों का सेवन
  • अस्तित्व के लिये दुर्वचन कहना
  • आपराधिक गतिविधि
  • आक्रामकता
  • पारस्परिक संबंधों में घनिष्ठ मित्रता की कमी
  • खराब संवाद
  • अंतरंगता और आत्मीयता की कमी

बच्चों के साथ प्रभावी ढंग से कैसे संवाद करें?

यह प्रमाणित हो गया है कि बच्चों के साथ प्रभावी ढंग से संवाद करना, पालकों के लिये सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं और वार्तालाप के प्रभावी होने के लिये, माता-पिता का निम्न बातों के लिये सचेत रहना बहुत जरूरी है:

सम्मानजनक और सरल शब्दावली का प्रयोग करे- यह देखते हुए कि बच्चे अभी भी सीख रहे हैं, माता-पिता को अधिक से अधिक जिम्मेदारी लेनी चाहिए। बच्चे से बात करते समय माता-पिता को खुला और सम्मानजनक होना चाहिए। साधारण शब्दावली, स्पष्ट और बेहतर समझ प्रदान करती है।

पारिवारिक समय साथ बितायें- एक नियमित पारिवारिक समय तय करें। इस समय में बोर्ड गेम खेले, साथ भोजन करें, टेलीविजन देखें या कोई अन्य गतिविधि करें जिससे एक साथ समय बिताने से आपसी सकारात्मक अनुभवों को बढ़ावा मिले। छुट्टियों में पर्यटन या पारिवारिक मिलन के रूप में भी एक साथ समय बिताने से प्रभावी ढंग से संवाद को बढ़ावा मिलता है।

अभिव्यक्ती की स्वतंत्रता देवें- बच्चों पर अपने विचारों को थोपने से बचे। उन्हें अपने विचारों को व्यक्त करने के लिए प्रोत्साहित करें, जो कि भविष्य में उनके लिये फायदेमंद हो सकता है। बच्चे यह स्वीकार करना सीखे कि सब को सब कुछ पता नहीं होता है और यह मान लेने से वे किसी से कम नहीं होगें। इससे विभिन्न विचार धाराओं को समझ कर साथ रहने और तुरंत आत्मरक्षा करने के लिये, होने वाले वाद-विवादों के अस्वास्थ्यकर तरीके से बचने में मदद मिलेगी।

बच्चों के दृष्टिकोण से सोचे- बच्चे के दृष्टिकोण से सोचने से हम अपने बात करने के तरीके में सुधार ला सकते है। हर तरह के अनावश्यक संवाद के सभी रूपों का उपयोग करने से बचे। बच्चे के समझ में न आने पर भी शांत और धैर्यपूर्वक बातचीत करें।

निर्णय लेने की प्रक्रिया में शामिल करें- बच्चों की आयु ध्यान में रख कर ही उदाहरणों की मदद से समझायें। साथ ही उन्हें प्रत्युत्तर के लिये प्रेरित करें, इससे बात को तार्किक ढ़ंग से समझने में उन्हें मदद मिलेगी। इस तरह के प्रभावी संवाद से बच्चें में निर्णय लेने की क्षमता का निर्माण होगा और निर्णय लेने की प्रक्रिया में शामिल होने पर वे आनंद महसूस करेगें।

समय-समय पर बच्चें की प्रशंसा करे- जब बच्चें स्वस्थ और प्रभावी संवाद करें तो उनकी प्रशंसा कर उन्हें प्रोत्साहित करें। स्वस्थ और प्रभावी संवाद के नियम घर पर सभी पर लागू होते हैं, जैसे कि अपशब्द का प्रयोग या गाली-गलौच न करना। बच्चे बड़ो को देख कर सीखते हैं; इसलिए, माता-पिता को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे अपने शब्दों के अनुसार कार्य करें, उपदेश न दें और व्यवहार में लायें।

पेशेवर मदद लेवे- परिवार के भीतर संवाद के तरीके को बेहतर बनाने के लिए पेशेवर मदद भी मांगी जा सकती है। निष्पक्ष बाहरी दृष्टिकोण परिवार के सदस्यों को चीजों को अधिक स्पष्ट रूप से देखने में मदद कर सकता है।

पालन-पोषण के तरीके

पालन-पोषण के विभिन्न तरीके निम्न हैं:

  • अनुशासनिक या प्रभुत्वकारिक पालन-पोषण- इसमें खुला संवाद, सहयोगात्मक समस्या समाधान और बातचीत के स्पष्ट नियम शामिल हैं। इस तरह के अधिनायकवादी पालन-पोषणमाता-पिता द्वारा संचालित होते है और इसमें सख्त नियम और दंड़ शामिल होते है।
  • उपेक्षित पालन-पोषण- बच्चे की जरूरतों के प्रति अनुपस्थिति और उदासीनता होती है।
  • नियमहीन या स्वतंत्रता देनेवाला पालन-पोषण- यह बच्चें की इच्छा पर निर्धारित होता है और इसमें नियमों की कमी होती है।

पालन-पोषण को बेहतर बनाने के तरीके

पालन-पोषण के कौशल में सुधार में बच्चें को ध्यानपूर्वक सुनना, सकारात्मक सुदृढीकरण ,आश्वासन प्रदान करना सबसे महत्वपूर्ण हैं। इस के साथ ही बच्चे को बिना किसी हिचकिचाहट के खुले रहने के लिए एक सुरक्षित और निर्भय स्थान देना, बच्चे को अपनी स्वायत्तता की अनुमति देना और बच्चे को बिना शर्त स्वीकार करना शामिल है। इसके अलावा बच्चे के दल में उस का साथी बने, विपक्ष का नहीं, बच्चे के हितों और सपनों का समर्थन करना, बच्चे को उनके व्यवहार के लिए जवाबदेह ठहराये लेकिन और उन पर लेबल ना लगाये या अंकित न करें और बच्चे को वह स्थान देवे जिसकी उन्हें आवश्यकता है।

हर बच्चा अलग होता है और उसका स्वभाव भी अलग होता है और उसके अनुसार ही पालन-पोषण को ढालने की जरूरत होती है। कुछ बच्चे खुले होते हैं और उन तक पहुंचना आसान होता है, जबकि अन्य बहुत शर्मीले या डरपोक हो सकते हैं। हर बच्चे की अपनी जरूरतें अलग-अलग होती है।

पालन-पोषण एक अंतिम लक्ष्य नहीं बल्कि एक प्रक्रिया है। बच्चों की परवरिश करते समय माता-पिता द्वारा बाधाओं का सामना करना स्वाभाविक होता है। लेकिन बाधाओं के बारे शिक्षित और सूचित माता-पिता, बच्चों को बढ़ने के लिए उपयुक्त वातावरण प्रदान करने की अधिक संभावना रखते हैं।


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