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सन् 2050 तक रोबॉटिक मांसपेशियां द्वारा शरीर की घड़ी को फिर से वापस धुमाया जा सकता हैं।

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जैसे-जैसे हमारी आयु बढ़ती हैं, शक्ति और मांसपेशियों का घटना अपरिहार्य होता है, जो स्वास्थ्य और जीवन की गुणवत्ता में कमी करता है। उम्र बढ़ने की प्रक्रिया से, अस्थि-पंजर की मांसपेशियों में होने वाली शक्ति की हानि को 'सारकोपीनिया' कहते हैं।

वर्तमान में सारकोपीनिया के उपचार विकल्प, बाहरी उपकरणों जैसे ऑर्थोस और एक्सोस्केलेटन पर आधारित हैं, लेकिन ये ऊतक को क्षति पहुँचा सकते हैं और इनका उपयोग सीमित हैं।

‘एमपावर’, प्रोजेक्ट को ब्रिस्टल विश्वविद्यालय के रोबॉटिक्स प्रोफेसर जोनाथन रॉसिटर के नेतृत्व में इम्पीरियल कॉलेज, यू.सी.एल और एन.आई.एच.आर डिवाइसेस फॉर डिग्निटी मेडटेक कोऑपरेटिव के साथ साझेदारी में किया जा रहा हैं।

यह एक नई दूरदर्शी परियोजना है, जो कृत्रिम मांसपेशियों को प्रत्यारोपित करके शरीर की कमजोर मांसपेशियों की जगह लेने या फिर उनके साथ काम करने की संभावना पर शोध कर रही है।

ये प्रत्यारोपित मांसपेशियां शरीर के बाहर से अपनी ऊर्जा प्राप्त करेंगी, उदाहरण के तौर पर एक छोटे पावर पैक से, जो स्नायविक (नसों) तंत्र से सीधे संवाद कर के उनकी संवेदना और चेतनता को नियंत्रित कर सकेगी।

परियोजना के निम्न लक्ष्य हैं:
  • ये कृत्रिम मांसपेशियां शरीर के प्राकृतिक कार्य-कलापों को फिर से बहाल कर के अधिक आरामदायक और सक्रिय जीवन जीने में मदद कर सके।
  • इनमें शरीर के साथ एकीभूत हो कर काम करने की क्षमता होनी चाहिये।
  • इन्हें प्राकृतिक हड्डीयों, ऊतकों के साथ आसानी और दृढ़ता से एकीकृत होना चाहिए और रोगी की अपनी गतिविधियों और मांसपेशियों की क्रियाओं के साथ कुशलता से समन्वय करना चाहिए।

स्रोत-मेडइंडिया

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