डॉ. स्मिता एस. दत्त द्वारा लिखित | शैला श्रॉफ द्वारा समिक्षित लेख on Aug 29 2016 2:21AM
बच्चों में बिस्तर गीला करने की समस्या…
आमतौर पर कई बच्चों को बिस्तर पर पेशाब करने की आदत होती हैं । बच्चा छोटा हो तो इसे हम अक्सर ज्यादा गंभीरता से नहीं लेते हैं। लेकिन कई बार ये समस्या बढ़ती उम्र के बच्चों में भी देखी जाती हैं, जिससे कारण दूसरी जगह हमें शर्मिंदा होना पड़ता हैं । माता-पिता बच्चे को इसके लिए डांटते भी हैं, लेकिन बच्चा उनके व्यवहार को समझ नहीं पाता। यह एक आम बात हैं और बच्चा चाहकर भी कुछ नहीं कर पाता हैं।
बिस्तर गीला करना वह अवस्था हैं, जिसमें पांच साल की उम्र से ऊपर के बच्चे रात में सोने के वक्त, अनजाने में बिस्तर पर ही सोते हुए पेशाब कर देते हैं । ऐसी स्थिति कोई बिमारी नहीं कह सकते, पर इससे 15-20 प्रतिशत बच्चे, 2-3 प्रतिशत किशोर और 0.52-2 प्रतिशत युवक प्रभावित रहते हैं।
सामान्यत: रात के समय जिन बच्चे और किशोरों में बिस्तर गीला करने की आदत रहती हैं, आमतौर पर वे दिन में बिस्तर गिला नहीं करते । हालांकि 10-20 प्रतिशत बच्चों में रात के अलावा दिन में भी बिस्तर गीला करने के लक्षण होते पाए गए हैं ।
बिस्तर गीला करने के कारण
जिन बच्चों में बिस्तर गीला करने की बीमारी होती हैं, वह उसे महसूस ही नहीं कर पाते । यह कई कारणों से होता हैं । इनमें से कुछ कारण निम्न हैं :
- -रात में न जग पाने की असमर्थता
- - मूत्राशय ( ब्लैड़र) का जरूरत से अधिक क्रियाशील होना
- - मूत्राशय के नियंत्रण में देरी होना
- -मूत्र विसर्जन पर नियंत्रण न होना
- -कब्ज
- -कॉफी का सेवन
- -मनोवैज्ञानिक समस्या
- -आनुवांशिकी कारण
- -नाक संबंधित अवरोध अथवा गहरी नींद
बिस्तर गीला करने से छुटकारा पाने के घरेलू उपाचार
घरेलू उपचार के दो मुख्य प्रकार हैं एक आदत में बदलाव और दूसरा पूरक व कुछ वैकल्पिक उपाय, जैसेकि अलार्म, गिफ्ट देना, होमियोपेथी और एक्युपंक्चर इत्यादि ।
आदतन उपचार
बिस्तर गीला करने की आदत के निवारण में कुछ आदतों पर नियंत्रण रखना भी हैं । इसके कुछ उपाय इस प्रकार हैं...
इनाम योजना- बिस्तर गीला करने वाले बच्चों के लिए यह सबसे महत्वपूर्ण व प्रारम्भिक उपाय हैं । जब भी बच्चा बिस्तर गीला न करे तो उसे पुरस्कृत करना चाहिए, इससे उसमें इसे जारी रखने का उत्साह आता हैं , जो कि सकारात्मक सुधार लाता हैं। हालांकि इसका एक उल्टा प्रभाव भी पड़ता हैं कि जब बच्चे बिस्तर गीला करते हैं. तो उनमें आमतौर पर ग्लानि की भावना रहती ही हैं और साथ ही इनाम न मिलने की हताशा भी रहती हैं।
सोने से पहले दो बार पेशाब कराएं : बच्चे को सोने के लिए तैयार करने से पहले पेशाब कराएं । जब बच्चा सोने के तैयार हो तो उससे पहले भी उसे पेशाब कराएं ।
शाम के समय तरल पदार्थ का सेवन कम करें : बच्चों को दिन के वक्त काफी मात्रा में तरल पदार्थ पीने को कहा जाना चाहिए । लेकिन शाम के बाद बच्चों को कम मात्रा में तरल पदार्थ पीने देना चाहिए। इससे बच्चों को सोने जाने से पहले मूत्राशय ( ब्लैड़र) खाली करने में मदद मिलती हैं। जरूरत से अधिक नियंत्रण के गलत परिणाम भी हो सकते हैं जिसका नतीजा मूत्राशय ( ब्लैड़र) की भंडारन क्षमता का कम होना हो सकता हैं। मूत्राशय ( ब्लैड़र) की क्षमता घट जाने से मूत्राशय ( ब्लैड़र) में रातभर पेशाब इकठ्ठा नहीं हो पाता और फलस्वरूप बच्चे और बिस्तर गीला करने लगते हैं।
नाइट लैम्प को करें उपयोग : रात के समय नाइट लैम्प ऑन रखकर बच्चों को रात के वक्त पेशाब करने के लिए उत्साहित किया जा सकता हैं। इससे बच्चों में अंधेरे का डर नहीं रहेगा और वह रात के वक्त शौचालय जाने से परहेज नहीं करेंगे।
समय से पेशाब कराना : रोज रात में बच्चों को जगाकर पेशाब कराने का नियम होना चाहिए। इससे बच्चों में पेशाब करने की आदत नियमित हो जाती हैं और बिस्तर गीला होने से बच जाता हैं। बड़े बच्चों, किशोर और व्यस्क को रात के वक्त अलार्म लाकर जागकर पेशाब करना चाहिए। कुछ अभिभावक बच्चों को सोने से जगाकर पेशाब कराने के लिए कुछ सांकेतिक शब्द का इस्तेमाल करते हैं ।
अलार्म : बिस्तर गीला करने वाले बच्चों को ऐसे बिस्तर पर सुलाया जाना चाहिए, जिसपर पेशाब गिरने से उसका इलेक्ट्रिक अलार्म बजना शुरू हो जाय। यह अलार्म शरीर से जुड़ा रहता हैं और जिसके सेंसर अंडरवियर से लगे होते हैं। ये अलार्म या तो हल्के उपकरण होते हैं या फिर इसमें ध्वनि अथवा कंपन होता हैं।
जरूरत से ज्यादा प्रशिक्षण : बिस्तर पर जाने से पहले व्यक्ति अधिक पानी पीकर मूत्राशय ( ब्लैड़र) में जरूरत से अधिक पानी भर लेता हैं । इस अलार्म प्रशिक्षण को दो सप्ताह तक व्यवहार में लाना चाहिए। जिससे शरीर को मूत्राशय ( ब्लैड़र) के अवधारन में पहचान होती हैं।
मूत्राशय ( ब्लैड़र) का प्रशिक्षण : मूत्राशय ( ब्लैड़र) को लम्बे समय तक अधिक मात्रा में पेशाब एकत्र करने का प्रशिक्षण दिया जा सकता हैं। बच्चों को दिन के समय अधिक मात्रा में तरल पदार्थ का सेवन करने का प्रशिक्षण देना चाहिए और पेशाब करने के बीच के समयांतराल को बढ़ाना चाहिए ।
बच्चों को नींद में उठाना : अभिभावकों को बच्चों को नींद से उठाकर पेशाब कराना चाहिए, जिससे मूत्राशय ( ब्लैड़र) खाली होगा और बिस्तर गीला होने से बचेगा। इस प्रक्रिया को लिफ्टिंग कहते हैं।
बिस्तर गीला होने से बचाने के प्रबंधन की आदतन और शैक्षणिक नीति
सूखे बिस्तर का प्रशिक्षण : इस प्रशिक्षण के तहत बच्चे को एक रात हर घंटे उठाकर पेशाब कराया जाता हैं। इस प्रशिक्षण के दौरान बच्चा नौ या उससे अधिक बार पेशाब करने जाता हैं। उसके अगले दिन बच्चें को रात में केवल एक बार पेशाब करने के लिए जगाया जाता हैं।
घरेलू प्रशिक्षण : इस प्रक्रिया में अलार्म, अति सक्रिय प्रशिक्षण, साफ रखने का प्रयास और बिस्तर सूखा रखने का प्रशिक्षण।
पूरक और वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति
मनोचिकित्सा : जिन बच्चों में मनोवैज्ञानिक समस्या होती हैं, उन्हें मनोचिकित्सा की जरूरत होती हैं। इस प्रक्रिया में थैरेपिस्ट आदतन बिस्तर गीला करने वाले बच्चे को मनोभावना और उसके भावनात्मक परेशानी को समझने का प्रयास करता हैं।
होम्योपैथी : बिस्तर गीला करने वाले बच्चों को होम्योपैथी दवा से सुधारा जा सकता हैं। होम्योपेथी दवाएं मूत्राशय (ब्लैड़र) की मांसलता को नियंत्रित करती हैं। यह मूत्राशय ( ब्लैड़र) व मूत्र मार्ग को दबाने वाले मांसपेशी के संचालन का प्रबंधन करता हैं। इससे बिस्तर गीला करने की आदत जाती रहती हैं और बच्चे में सकारात्मक ऊर्जा आती हैं। होम्योपैथी दवा के मीठी, प्राकृतिक और सुरक्षित होने के कारण यह बच्चों के लिए काफी आकर्षक और प्रभावी होता हैं। हालांकि इस थैरेपी के प्रभाव के लिए क्लिनिकल शोध की जरूरत हैं।
भोजन : कैफिन युक्त पेय पदार्थ के सेवन से बचें। कैफिन युक्त पेय से बिस्तर गीला करने की सम्भावना ज्यादा बढ़ जाती हैं। कुछ खाद्य पदार्थ के मूत्राशय ( ब्लैड़र) पर प्रभाव को समझने के लिए, काफी शोध डेटा की जरूरत हैं । बिस्तर गीला करने का एक बड़ा कारण कब्ज भी हो सकता हैं इसलिए कब्ज की दवा भी जरूरी
हैं ।
एक्युपंचर और काइरिप्रैक्टिक यह दूसरे प्रकार की चिकित्सा पद्धति हैं, जिससे बिस्तर गीला करने की समस्या से निजात पाया जा सकता हैं। हालांकि अभी भी इस थैरेपी के काफी शोध जांच की जरूरत हैं ।