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शराब त्वचा रोग और सोरायसिस को बढ़ाती हैं

शराब से रोसेशा (चेहरे और नाक पर निरंतर लाली रहना), पोरफाइरिया क्युटेनी टारड़ा (सूरज की किरणों से शरीर में छाले हो जाना), तरुण मुँहासे, चक्रिक खुजली और त्वचा जैसे रोग हो सकते हैं।

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शराब के सेवन से कई स्वास्थ्य समस्याएँ पैदा होती हैं, जो कि जिगर, दिल, गुर्दे, रक्त और अस्थि मज्जा जैसे अंगों को प्रभावित पैदा करने के लिए जानी जाती हैं । यह पोषक तत्वों की कमी और प्रतिरक्षा में समग्र कमी के लिए भी जिम्मेदार हैं । शराब से त्वचा पर विभिन्न प्रकार का हानिकारक प्रभाव पड़ता हैं, जैसे कि रोसेशा, पोरफाइरिया क्युटेनी टारड़ा, वयस्क मुँहासे और चक्रिक खुजली इत्यादि।

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हाल ही के एक लेख ने त्वचा पर शराब के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से परिवर्तन की समीक्षा की। शराब से जिगर, एस्ट्रोजेन और पित्त नमक के वितरण में असंतुलन पैदा करता हैं, इससे असाधारण रूप से त्वचा पर लाली और सूजन के साथ चयापचय बाधा में आ जाती हैं। पुरुष शराबियों में, महिला हार्मोन जिसे एस्ट्रोजन कहा जाता हैं की वृद्धि होती हैं और पुरुष टेस्टोस्टेरोन हार्मोन में कमी । जिससे उनमे स्तनों का विकास, शरीर औंर जाँघ में बाल और शरीर में वसा का पुनर्वितरण नारी के शरीर की संचरना के अनुरूप होने लगता हैं। लीवर सिरोसिस और पोर्टल उच्च रक्तचाप से नाभि के आसपास एक विशिष्ट त्वचा परिस्थिति पैदा होती हैं जिसे ‘कैपुट मैडयूसा’- नसों का फूलना भी कहा जाता हैं।

(पोर्टल उच्च रक्तचाप : हमारी पोर्टल नस जो चयापचय (खाने को पचाने वाले) अव्यव से लेकर जिगर तक फैली होती हैं, उसमें दबाव बढ़ने से रक्त के बहाव में रूकावट आती हैं और नाभि के आसपास की नसे फूल जाती हैं।)

शराबियों में प्रणालीगत और सतही त्वचा की समस्याओं के साथ बैक्टीरियल/जीवाणु और फंगल संक्रमण में वृद्धि भी हो जाती हैं। शराब के कारण पोषक तत्वों की कमी और आंतों से जिंक और विटामिन के कमजोर अवशोषण के परिणामस्वरूप प्रतिरोधक क्षमता में कमी आ जाती हैं। जिंक, विटामिन सी और पता लगाने वाले तत्वों की कमी, श्लैष्मिक बाधाए, घाव न भरना और संक्रमण की बढ़ती प्रवृत्ति आदि के लिए जिम्मेदार हैं ।

त्वचा की अन्य असामान्यताएं जैसे कि विटामिन बी की कमी से खाल का फटना और खून बहना(पॅलाग्रा कहा जाता हैं), होठों के कोनों का फटना, और आसानी से चोटिल होने वाले लाल और बैंगनी रंग के रक्तस्राव शामिल हैं ।

एक चयापचय विकार जो "पोरफाइरिया क्युटेनी टारड़ा (पीसीटी)" के रूप में जाना जाता हैं, जो की यकृत के प्रतिक्रियात्मक चयापचय में हेपटिक एंजाइमों की कमी के कारण होता हैं, विशेष रूप से डेकार्बाक्सिलेज युरोपीरिनोजन की कमी से। फोटो रिऐक्टीवॉरफीरिन प्री करसरस (सू्र्य की पूर्ववर्ती प्रतिघातक क्रिया) के कारण त्वचा (फोटो सेंसीटीव) पर भूरे चकते या दाग हो जाते हैं ।

शराब से विभिन्न एंजाइम सक्रिय होने से, पोरफाइरिया क्युटेनी टारड़ा में वृद्धि होती हैं और त्वचा में छाले और धूप में अनावृत त्वचा में फोड़े हो जाते हैं, परिणामस्वरूप घाव के भरने के बाद इनमें दाग और सफेद उभरे छाले (मिलिया) हो जाते हैं ।

शराब, मस्तिष्क के केन्द्र बिन्दु को, जो रक्त वाहिकाओं के स्वस्थ बहाव को नियंत्रित करता हैं, उसे भी अशांत करने के लिए जिम्मेदार हैं। शराब से त्वचा वाहिकाओं फैल कर, रक्त की आपूर्ति को बढ़ाती हैं, जिस से त्वचा पर एक विशिष्ट लालिमा और निस्तब्धता आ जाती हैं। शराब चयापचय एंजाइम की एक आनुवंशिक कमी भी चेहरे की लाली और चमड़ी पर लाल-लाल दानों के लिए जिम्मेदार हैं।

सोरायसिस एक स्थायी असंक्राम्य प्रतिरक्षा मध्यस्थ बीमारी हैं, जो कई अनेक कारणों से त्वचा को प्रभावित करती हैं, जिससे कोशिकाए सामान्य रूप से अधिक विभाजित हो कर त्वचा की मोटाई में वृद्धि करती हैं। जाहिर हैं, शराब का दुरुपयोग सोरायसिस को उत्तेजित कर इसकी वृद्धि की संभावना को बढ़ाता हैं ।

टेक्सास के वेल कॉर्नेल मेडिकल कॉलेज के, त्वचा विज्ञान विभाग की, डॉ. नतालिया कज़ाकेविच, ने 82,869 महिलाओं का 14 साल तक अध्ययन किया, जिनका प्रति सप्ताह मादक पेय का सेवन 2.3 था। उसी अध्ययन में यह भी पाया गया हैं कि महिलाओं में कड़ी बियर का अत्यधिक सेवन ही सोरायसिस का एकमात्र कारण बन सकता हैं। इसी तरह से, 100 ग्राम से अधिक शराब का दैनिक सेवन, पुरुषों में सोरायसिस में वृद्धि कर, उसके विकास की संभावना को बढ़ाता हैं ।

सोरायसिस के उपचार के तहत जो मरीज शराब का सेवन करते हैं, उनको दवाई ठीक से लागू नहीं होती हैं । इसके अतिरिक्त बहुलता से पीने वालों के हाथों और उंगलियों के पीछे की सतह पर परिधीय परिवर्तन होने लगता हैं, जो प्रतिरक्षा से समज्ञौता करने वाले (इम्युनो क्रॉम्प्रमाईज़) मरीजों के समकक्ष हैं।

कई सिद्धांत हैं जो यह बताते हैं कि शराब किस तरह से सोरायसिस को तीव्रता से उत्तेजित कर, प्रतिरक्षात्मक क्रिया का दमन करती हैं, सूजन पैदा करने वाले सॉटेकिन्स प्रोटीन (जो कोशिकाओं संकेत /सिगनल देता हैं) और कोशिका चक्र को उत्प्रेरित करती हैं, जिस से त्वचा कोशिकाओं के प्रजनन में वृद्धि, और सतही संक्रमण और क्षति की प्रवृत्ति में विकास होता हैं।

उपरोक्त जानकारी से यह निष्कर्ष निकलता हैं कि सोरायसिस और त्वचा की समस्याओं की वृद्धि में शराब का स्पष्ट रूप से योगदान हैं। शराब से न केवल रोग बढ़ता हैं वरन यह उपचार के लिए भी प्रतिरोध का कारण बनती हैं। अकेले चिकित्सा से त्वचा के विकार का उपचार संभव नहीं हैं। शिक्षा और शराब सेवन के प्रभाव के बारे में परामर्श पर, जोर देने की जरूरत हैं और साथ ही यह भी सुनिश्चित करने की कि रोगी अपने नियमित दैनिक पेय से दूर रहें।


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