Dr. Trupti Shirole द्वारा लिखित | Shaila Shroff द्वारा समिक्षित लेख on Oct 3 2017 3:58AM
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पिछले एक दशक से मधुमेह और एड्स की संख्या में काफी वृद्धि देखी गई हैं। साथ ही प्रारंभिक परीक्षणों और बेहतर प्रबंधन के कारण एड्स रोगियों की जीवित दर में भी सुधार देखे गये हैं। इस बढ़ी हुई जीवित दर का अर्थ हैं कि पहले से मधुमेह से पीड़ित लोगों में एड्स विकसित हो गया, वहीं एड्स रोगियों मे डायबिटीज और अन्य चयापचय विकारों के मामलों का भी पता चला हैं। भविष्य में जैसे- जैसे एड्स का उपचार और इस के रोगियों तक पहुंचने के साधन विकसित होगे, एड्स से संबंधित डायबिटीज की घटनाओं में बढ़ोतरी होना भी निश्चित हैं।
अधिकांश एच आई वी से जुड़े मधुमेह के रोगियों को टाइप-2 डायबिटीज मेलेटस है।
मधुमेह और एच आई वी के रोगियों को 3 उपसमूहों में वर्गीकृत किया जा सकता हैं – पहले से मधुमेह के रोगी जिनके मधुमेह का निदान एच आई वी का पता चलने पर हुआ हैं, यह ऐसे लोग हैं जिनके मधुमेह का निदान एच आई वी संक्रमण की शुरूआत में हो जाता हैं और दूसरे अन्य वे लोग हैं जिन्हें उपचार शुरू होने के बाद मधुमेह हो जाता हैं। इन उपसमूहों को अलग-अलग प्रबंधन की आवश्यकता होती हैं क्योंकि सभी उपसमूहों के बीच चयापचय अनियंत्रण तंत्र भिन्न होता हैं। कम उम्र में एच आई वी संक्रमण के कारण लोगों में पहले से मधुमेह के अस्तित्व की घटना अपेक्षाकृत कम होती हैं। आम तौर पर मधूमेह उम्र के साथ धीरे-धीरे विकसित होता है। एच आई वी और एच आई वी उपचार से संबंधित कुछ चयापचय कारकों के कारण भी मधुमेह की घटनाएं बढ़ सकती हैं।
मधुमेह जोखिम के कारककई प्रकार के जोखिम कारक हैं जैसे कि उम्र का बढ़ना, पुरुष वर्ग, लंबे समय से एड्स संक्रमण, सी डी4 में कमी, उच्च वायरल का बोझ, उच्च बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई), कमर का बड़ा हुआ घेरा या कमर से कूल्हे का अनुपात, निम्न सामाजिक आर्थिक श्रेणी और कुछ जातीय पृष्ठभूमि या संस्कृति इत्यादि एड्स के रोगियों में चयापचय लक्षणों को विकसित करने में योगदान करते हैं।
एच आई वी , एच सी वी और डायबिटीजएच आई वी संक्रमण, हेपेटाइटिस सी संक्रमण (एचसीवी) से भी संबंधित हैं। एक शोध से अब यह पता चला हैं कि यदि आपकी आयु 40 वर्ष से अधिक हो और एच सी वी संक्रमण से ग्रस्त हो तो, उन लोगों की तुलना में जिन्हें संक्रमण नहीं हैं, आपके मधुमेह विकसित होने की संभावनाए तीन गुना अधिक बढ़ जाती हैं। एच आई वी संक्रमण अंतःस्त्रावी (एंड़ोक्रिन) हार्मोन की कमी जैसी असामान्यताओं से भी जुड़ा हैं, जो कि एच आई वी संक्रमित लोगों में इंसुलिन प्रतिरोध में योगदान कर सकते हैं।
वायरल बोझ में वृद्धि, सीडी4 में कमी और एच आई वी संक्रमण की लंबी अवधि, इत्यादि। यह वे वायरल कारक हैं जो मधुमेह जोखिम में योगदान करते हैं।
अत्यधिक सक्रिय एंटीरेट्रोवाइरल थेरेपी (हार्ट HAART)से वायरल भार को दबाने, सी डी 4 गिनती में सुधार, अवसरवादी संक्रमणों में कमी और अस्पताल में रहने की अवधि और मृत्यु दर में कमी से एच आई वी रोगियों के नैदानिक परिणाम में उल्लेखनीय सुधार पाया गया हैं। हालांकि हार्ट( HAART) से भी चयापचय रोग में वृद्धि होती हैं, जिसमें इंसुलिन प्रतिरोध, मधुमेह डाइस्लिपीडेमिया (डिस्लिपीडिमिया खून में लिपिड या चर्बी(जैसे ट्राइग्लिसराइड्स, कोलेस्ट्रॉल या वसा फॉस्फोलिपिड्स) की एक असामान्य मात्रा हैं। अक्सर इंसुलिन के लंबे समय तक लेने से भी डिस्लेपीडिमिया हो सकती हैं) और लिपॉडिस्ट्रॉफी (एक विकार है जिसमें शरीर में वसा का उत्पादन नहीं हो सकता हैं) शामिल हैं। हाल ही में हुई एक समीक्षा से पता चलता हैं कि हार्ट (एचएआरटी HAART) के उपयोग से एड्स संक्रमित पुरुषों में डायबीटस चार गुना अधिक होता हैं, क्योंकि बेहतर पोष्टिक स्थिति से वजन बढ़ने से और एच आई वी के प्रभावी उपचार के कारण वे संवेदनशील हो जाते हैं।
जाँचएच आई वी से प्रभावित रोगियों को मधुमेह की जांच करवानी चाहिए। हार्ट (HAART) के रोगियों को उपचार की शुरुआत में और उसके बाद 3 से 6 महीने में जांच करवा लेनी चाहिए।
जोखिम के कारण एच आई वी संक्रमित लोगों में मधुमेह के प्रभावी प्रबंधन के लिए, चिकित्सकों को नीचे बताये जोखिम कारको, जैसे कि उच्च रक्तचाप, तपेदिक, एसटीडी आदि के बारे में ध्यान दे कर उनका प्रभावी ढंग से उपचार करना चाहिए।
जीवन शैली में बदलाव जीवन शैली में बदलाव जैसे कि शारीरिक गतिविधियां या व्यायाम करें, स्वस्थ आहार लेवें, धूम्रपान करना बंद करें ये खास महत्वपूर्ण बातें हैं। डॉयबीटिस और एच आई वी के तनाव से निपटने के लिए, मनोवैज्ञानिक सहायता भी प्रदान की जानी चाहिए।
दवाईयों का सेवनमुंह से सेवन करने वाली एंटी-डायबेटिक दवाईयों का चयन करना चाहिए, जिस से दस्त या अंग दुर्बलता जैसे दुष्प्रभावों को रोका जा सके। डॉयबीटिस और एड्स पीड़ितों को इंसुलिन दी जानी चाहिए। हालांकि एच आई वी संचरण को रोकने के लिए, रोगियों को तेज धार वाले नश्तर, ग्लूकोज स्ट्रिप्स, इंसुलिन सिरिंज, पेन और सुइयों के निस्तारण के बारे में अच्छी तरह से सिखाया जाना चाहिए। रोगियों को हार्ट (HAART) के संभावित जोखिमों, असुविधाओं और फायदों के बारे में भी सलाह दी जानी चाहिए और हाइपरग्लॉयसेमिया की नियमित निगरानी के साथ साथ स्वास्थ जीवन शैली अपनाने के लिये भी प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
एच आई वी का पता लगने से पहले डॉयबीटिस का जो प्रबंधन और दवा, उपचार चल रह था, वही जारी रखाना चाहिए। यदि ग्लूकोज़(शर्करा) का नियंत्रण बिगड़ जाता हैं तब इंसुलिन चिकित्सा शुरू की जा सकती हैं। किसी भी प्रकार के मधुमेह होने के बावजूद, इंसुलिन सभी एच आई वी रोगियों के उपचार का सबसे सुरक्षित और प्रभावी तरीका हैं।