ड़ॉ स्मिता एस. दत्त द्वारा लिखित | शैला श्रॉफ द्वारा समिक्षित लेख on Aug 11 2016 5:42AM
एलर्जी क्या हैं?
एलर्जी शब्द सुनते ही आपके मन में लगातार छींकने, त्वचा पर लाल चकत्ते आना या फिर सांस लेने में तकलीफ होने जैसे ख्याल आते हैं। सामान्य वातावरण में ऐसे लक्षण किसी भी व्यक्ति में होना, एक आम बात हैं । ऐसे में यह समझना काफी आवश्यक हैं कि एलर्जी आखिर हैं क्या ?
प्रतिरक्षा आधारित अति संवेदनशिल प्रतिक्रियाओं को एलर्जी कहा जाता हैं । एलर्जी होने पर शरीर में आई जी ई /आई जी जी/ आईजी ए या आई जी एम बढ़ता हैं । एजर्ली के परिणाम स्वरूप कुछ शारीरिक नुकसान हो सकता हैं या फिर कोशिका संबंधित प्रतिक्रिया हो सकती हैं । शरीर को नुकसान पहुंचाने वाले एलर्जी को दो श्रेणी, आई जी ई एलर्जी या फिर गैर आई जी ई एलर्जी में रखा गया हैं । आई जी ई एलर्जिक के कुछ उदाहरण- पराग कण से एलर्जी, एलर्जिक अस्थमा और आंख आना आदि हैं । वहीं गैर आई जी ई एलर्जी में आंख आना, बुखार, अस्थमा, अचेतानात्मक दौरे व नाक शोथ (एनाफिलेकसिस) आदि हैं। कोशिका संबंधित एलर्जी में मवादकणिकायें(लिफोसाइटिस) सक्रिय हो जाती हैं, जिससे सम्पर्क से होने वाला चर्मरोग होता हैं । सबसे आम एलर्जी अस्थमा व पराग कण से एलर्जी हैं ।
चर्मरोग विशेषज्ञ, डेविड स्ट्राचन के अनुसार, एक व्यक्ति जो की धूल भरे वातावरण से दूर और बहुत सफाई वाले वातावरण में रहता हैं और एंटिबेक्टेरियल साबुन, डेटरजेंट और एंटिबायोटिक्स का नियमित प्रयोग करता हैं। उसकी एलर्जी होने की संभावनायें बढ़ जाती हैं। उन्होने पाया कि पश्चिम देशों के बच्चों में एलर्जी अधिक होती हैं। उनका मानना हैं कि अधिक कीटाणु मुक्त स्वच्छ वातावरण में रहने के कारण, कीटाणुओं से प्रतिरक्षा करने के प्रति हमारी संवेदनशिलता कम हो जाती हैं। फलस्वरूप एलर्जी अधिक होने लगती हैं। शोध में पाया गया हैं कि विश्व के अन्य विकसित देशों के मुकाबले भारत, पाकिस्तान और चीन जैसे देशों में एलर्जी रोग कम हैं। इसका कारण वे रोगजनक कीटाणुओं से प्रतिरक्षा करने के प्रति क्षमता को मानते हैं। हालांकि विकासशील देश, जहां विकसित देशों जैसी जीवन शैली अपनाई जा रही है, वहां पश्चिम की तरह एलर्जी बढ़ती दिखाई दे रही हैं। शोध में पाया गया हैं कि विश्व के अन्य विकसित देशों के मुकाबले भारत, पाकिस्तान और चीन जैसे देशों में एलर्जी रोग कम हैं। हालांकि विकासशील देश जहां विकसित देशों जैसी जीवनशैली हैं, वहां पश्चिम की तरह एलर्जी पैटर्न दिखाई देता हैं।
एलर्जी कब-कब होती हैं?
एलर्जी कैसे होगी, यह व्यक्ति के संपर्क में आने वाले एलर्जी पर निर्भर करता हैं। यदि व्यक्ति के लिये पराग एलर्जिक हैं, तो उसे वंसत के मौसम में एलर्जी होगी। सूखेपन से भी एक्जिमा होने की सम्भावना बढ़ जाती हैं। पश्चिमी देशों मे जहाँ ऐसी एलर्जी के मामले आम होते हैं, वहाँ एशिया में अस्थमा और भोजन से एलर्जी के ।
बच्चों में एलर्जी :
यदि मां-बाप में एक या दोनों को एलर्जी होती हैं, तो 70 प्रतिशत यह सम्भावना होती हैं कि बच्चों में भी एलर्जी होगी। वहीं केवल 10 प्रतिशत यह होता हैं कि जिनके मां-बाप को एलर्जी न हो, उन्हें एलर्जी होती हैं। बच्चों में एक्जिमा एलर्जी आम बात हैं। इसे पैर, बांह और चेहरे पर चकत्ते के रूप में चिन्हित किया जा सकता हैं। बच्चा जब दो साल से कम का हो तब ऐसे लक्षण देखे जाते हैं। जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता हैं, चकत्ते कोहनी, घुटनों के पीछे बढ़ने लगते हैं । आमतौर पर लगभग 20 प्रतिशत बच्चे एक्जिमा का शिकार होते हैं। विश्व के लगभग 6 प्रतिशत बच्चे भोजन से होने वाली एलर्जी से प्रभावित होते हैं ।
एलर्जी के कुछ सामान्य प्रभाव:
आंखों में पानी आना छींकना नाक मसूड़ों एड़ी व हथेली में खुजली गले में कसाव लाल चकत्ते अस्थमा निगलने में परेशानी सदमा, चिंता और रक्त दाब उल्टी दस्त इत्यादि ।
एलर्जी के कारण क्या हैं ?
- विरासत
- अनुवांशिकता(जेनेटिक)
- भोजन
- एंटिबायोटिक्स
- कीड़े का काटना
- लेटेक्स दस्ताने
- जानवरों के बाल
- धूल के कण
- मौसम संबंधित एलर्जी
- पराग
- कवक के बिजाणु
- घांस आदि हैं।
एलर्जी के घरेलू उपाय:
संपूरक और वैकल्पिक चिकित्सा (सी ए एम) को, एलर्जी को ठीक करने के लिए, व्यवहार में लाया जाता हैं। चाइनीज, आयुर्वेदिक दवा, खुशबुदार पौधे, आयुर्वेदिक चाय और लेक्टिक अम्ल जीवाणु
(एसिड बेक्टिरिया) को एलर्जी व अस्थमा ठीक करने के लिए, ज्यातर प्रयोग में लाया जाता हैं।
खुशबूदार पौधे : खुशबुदार पौधे जिसमें सौंफ, पुदीना सत्त, निलगिरी, कपूर, टाइगर व विक्स वेपोरप बाम आदि एलर्जी से राहत दिलाने में लाभकारी होते हैं। इसे छाती व गले पर लगाया जाता हैं जिससे जलन से राहत मिलती हैं। शहद, केले व मिश्री भी गले को राहत पहुंचाती हैं। एलर्जी से निपटने के लिए चाय, अदरक, अजवायन के फूल, सहजन, एंजेलिका व अन्य आयुर्वेदिक नुसके काफी लाभकारी सिद्ध होते हैं।
भोजन : लहसुन, विटामिन्स (ई, सी, ए) एंटिऑक्सिडेंट, खट्टे फलों का तेल, प्याज, ओमेगा-3 फैटि एसिड और मसाले, व्यक्ति में रोग की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा देते हैं। नमक व चीनी का कम और मैगनिशियम का ज्यादा मात्रा में सेवन, अस्थमा को नियंत्रित करने में मदद करता हैं।
प्रोबायोबेक्टेरिया : पनीर, खमीर युक्त खाद्य व दही में, लाभकारी बैक्टेरिया जैसे कि लेक्टोबासिलस स्ट्रेन पाए जाते हैं। लैक्टोबेसिलस, प्रोबायोटिक की एक नस्ल हैं, जो व्यक्ति की आंत में माइक्रोफ्लोरा को नियत्रित करती हैं । ऐसा देखा गया हैं कि जो लोग लेक्टोबेसिलस पदार्थों का सेवन करते हैं, उनमें एलर्जी उन लोगों अपेक्षा की कम होती हैं, जो ऐसे पदार्थों का सेवन नहीं करते हैं।
एलर्जी से निजात पाने के प्राकृतिक उपचार :
एलर्जिक कारक से दूरी : एलर्जी को ठीक करने का सबसे प्रथम और कारगर उपाय यह हैं कि जैसे ही एलर्जी के सूत्र की पहचान कर ली जाये तो, डाक्टर की सलाह से वह व्यक्ति, उन एलर्जिक कारकों के संपर्क से दूर रहें। जैसे भोजन संबंधित एलर्जी को, उन पदार्थों के सेवन करने से, परहेज करके, नियंत्रित किया जा सकता हैं। बादाम, सोया, अंडे, गाय का दूध कुछ आम एलर्जिक कारक हैं। उसी प्रकार रसायन से दूरी या वैसे स्थानों पर दस्ताने या नकाब (ग्लब्स या मास्क लगा कर काम करने से भी एलर्जी नहीं होती हैं। जिन जानवरों से एलर्जी होती हैं, उनसे दूर रहकर भी एलर्जी से बचा जा सकता हैं। हालांकि घर या बाहर धूल के कणों के संपर्क में आने से भी एलर्जी हो सकती हैं। शोध अध्ययन यह बताते हैं कि घर में मौजूद धूल के कण के संपर्क में आने से अस्थमा और एक्जिमा की संभावना ज्यादा बढ़ जाती हैं। इसलिए धूल से दूरी, एलर्जी की समस्या का आसान उपाय हैं। घर बदलना और कालीन वगैरह साफ करने या झाड़ने से पहले सावधानी बरतनी चाहिए।
प्राथमिक बचाव : जिन मां-बाप को एलर्जी होती हैं, उनके बच्चों में भी एलर्जी की समस्या उत्पन्न होती हैं। अपने बच्चों को एलर्जी का शिकार होने से बचाने के लिए बच्चे के जन्म के कुछ महिने तक मां का दूध पिलाने की सलाह दी जाती हैं। जिन लोगों को धुएं से एलर्जी होती हैं, उन्हें धूम्रपान करना छोड़ देना चाहिए । इसके अलावा हाइड्रोलाइज्ड (अम्लीय विघटन) दूध का तरीका उन बच्चों के लिए काफी लाभकारी होता हैं, जिन बच्चों को मां के दूध से एलर्जी होती हैं ।
वसंत ऋतु में एलर्जी से बचने के नुस्खे :
अमेरिकन कॉलेज ऑफ एलर्जी, अस्थमा एंड इम्युनोलॉजी के अनुसार, जिन लोगों को वसंत ऋतु में एलर्जी होती हैं, उन्हें बचाव के जरूरी उपाय पहले ही कर लेने चाहिए। वसंत ऋतु के दौरान पराग के प्रवाह को रोकने के लिए, सभी खिड़की, दरवाजे और रोशनदान (वेंटिलेशन) बंद कर लेने चाहिए। इस उपाय का घर, कार और ऑफिस हर जगह इस्तेमाल करना चाहिए। वसंत ऋतु के दौरान पराग के संपर्क में आने से बचने के लिए नकाब (मास्क) का उपयोग करना चाहिए। विशेषकर के जब आप बगीचे में मिट्टी की खुदाई का कोई काम कर रहे हों या फिर पार्क में टहलते समय या पेड़ों के रास्ते से गुजरते समय। एलर्जी को दूर करने के लिए सबसे पहले व्यक्ति को बाहर पहने गए अपने कपड़े उतार कर स्नान करना चाहिए। इससे एलर्जिक कारक साफ हो जाते हैं। वातावरण में काफी मात्रा में पराग होने पर दिन के समय बाहर निकलने से बचें।
एलर्जी से छुटकारा पाने के होमियोपैथिक उपाय :
प्राकृतिक उपायों में एलर्जी को दूर करने वाली जड़ी-बूटियों के उपचार को और होमियोपैथी के उपचार को एक साथ व्यवहार में नहीं लाना चाहिए । एक समय में एक ही उपचार के तरीके को व्यवहार में लाना चाहिए। होमियोपैथी का अन्य गुण यह भी हैं कि जड़ी-बूटी का इस्तेमाल काफी कम मात्रा में किया जाता हैं । इस तकनीक को अजोपैथी के नाम से जाना जाता हैं । होमियोपैथी में अलग-अलग जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल होता हैं । होमियोपैथी डाक्टर रोगी की जीवनशैली, व्यक्तिव या फिर रोगी के द्वारा बताए गए लक्षणों के आधार पर उसकी जांच करते हैं । रोगी की कही सूचना के आधार पर दवा दी जाती हैं। डाक्टर की गैरमौजूदगी में, लक्षणों के आधार पर बिना पर्ची के दवाइयां आसानी से खरीदी जा सकती हैं और उनका कोई विपरित प्रभाव भी नहीं होता हैं । होमियोपैथी उपचार से तेज बुखार और अस्थमा का प्रभावी रूप से इलाज होता हैं।
एलर्जी के लिए अच्छ क्या हैं ?
एलर्जी या अति संवेदनशिल प्रतिक्रियाओं से बचने के लिए आंत में या उसके छोटे हिस्से में बैक्टिरिया होना काफी लाभकारी होता हैं। लम्बी श्रंखला की बिमारी से बचाने में ये प्रोबाओटिक्स काफी मदद करते हैं। खमीर युक्त खाद्य, मक्खन व दही में लैक्टोबेसिलस पाया जाता हैं। जो गर्भवती महिलाएं अपने गर्भ के अंतिम समय में प्रोबायोटिक लेते हैं उनमें एक्जिमा के चांस कम होते हैं। प्रोबाओटिक बैक्टिरिया का प्रभाव अस्थमा से बचने में काफी मददगार होता हैं।
नवजात को एलर्जी से बचाने के लिए मां के दूध का सेवन सबसे लाभकारी उपाय हैं। बच्चे को जन्म के कुछ महीनों तक, मां का दूध पिलाने से उसके पेट में माइक्रोफ्लोरा(प्रथम अमाशय सूक्ष्मजीवी) बढ़ता हैं।
प्रीबाओटिक्स ऐसे अव्यव हैं, जो प्रोबाओटिक बैक्टिरिया को बढ़ाते हैं । इन्सुलिन एक प्रीबाओटिक तत्व हैं, जिसे पौधे से प्राप्त किया जाता हैं । इसे मानव द्वारा तैयार नहीं किया जा सकता। लेकिन यह काफी लाभकारी बैक्टिरिया होता हैं जो आंत में पाया जाता हैं । प्रोबाओटिक अव्यवों का सेवन करने से एलर्जी की सम्भावना काफी कम हो जाती हैं ।
कुछ परजीवी जो कि सिस्टोसोमियासिस और फाइलेरियोसिस के संक्रमण से उत्पन्न होते हैं, वह शैशवकालीन एक्जिमा जैसी एलर्जी से बचाते हैं ।
-
सिस्टोसोमियासिस : इसे घोंघा बुखार कहा जाता हैं । यह पानी में घोंघों द्वारा जीवाणु छोड़ने और उस पानी के प्रयोग से होती हैं।
-
फाइलेरिया: हाथी पाँव ।
एलर्जी से कैसे पाएं छुटकारा ?
वैसे तो एलर्जी से पूरी तरह से निजात पाना काफी मुश्किल हैं पर, एलर्जिक कारक की पहचान, उससे बचाव और उसके इलाज से व्यक्ति लम्बा, स्वस्थ और प्रतिक्रिया मुक्त जीवन जी सकता हैं ।
एलर्जी से परेशान लोगों के लिए कुछ सुझाव :
-
एलर्जी से परेशान लोगों को एलर्जी के कारक की पहचान करनी चाहिए और उसके संपर्क में आने से बचना चाहिए ।
-
अचानक हुई एलर्जिक प्रतिक्रिया से बचने के लिए व्यक्ति को हमेशा पर्याप्त दवाइयां साथ रखनी चाहिए ।
-
जिस व्यक्ति के परिवार में एलर्जी की बिमारी हो उस व्यक्ति को जीवन में कभी भी एलर्जी का शिकार बनने की जोखिम के लिए तैयार रहना चाहिए ।
- एलर्जी से ग्रस्त लोगों को प्रोबाओटिक और प्रीबाओटिकयुक्त भोजन का सेवन करना चाहिए ।
1.प्रोबाओटिक- जीवाणु जो एलर्जी ग्रस्त लोगों के लिये अच्छे हैं, जैसे कि दही।
2.प्रीबाओटिक- कई चीजें जो पाचन योग्य न हो लेकिन शरीर के लिये अच्छी हैं।
- यदि एलर्जी काफी बढ़ जाए और पर्याप्त सावधानी व उपचार के बावजूद भी सही नहीं हो, तो व्यक्ति को डाक्टर से संपर्क करना चाहिए । डाक्टर एलर्जी से बचने के लिए और भविष्य में इसकी रोकथाम के लिए उचित उपाय की दवा देगा, जिससे एलर्जी की समस्या से छुटकारा मिल सकेगा ।