About Careers Internship MedBlogs Contact us
Medindia
Advertisement

वैक्सीन के प्रकार

Font : A-A+

वैक्सीन के प्रकार:

वैक्सीन या टीकों के कई प्रकार होते हैं। प्रत्येक प्रकार के टीके की रचना हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को कुछ खास प्रकार के कीटाणुओं ( जिनसे गंभीर बीमारियाँ होती हैं ) से लड़ना सिखाने के लिए की गयी है ।

Advertisement

टीके बनाते समय ध्यान में रखने वाले मुख्य बिंदु:

टीके बनाते समय वैज्ञानिक निम्न बातों के आधार पर उनका निर्माण करते हैं:
  • हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली रोगाणु के विरूद्ध कैसे प्रतिक्रिया करती है,
  • रोगाणु के खिलाफ किसे टीकाकरण की आवश्यकता है,
  • वैक्सीन बनाने के लिए सबसे अच्छी तकनीक कौन सी हैं ।

इन बिंदुओं के आधार पर, वैज्ञानिक यह तय करते हैं कि वे किस प्रकार की वैक्सीन बनाएंगे। कई प्रकार की वैक्सीन हैं, लेकिन मुख्य निम्न तरह की हैं:

  • इन एक्टीवेटेड वैक्सीन
  • लाइव-अटेन्यूएटेड वैक्सीन
  • मैसेंजर आरएनए (mRNA) वैक्सीन
  • सबयूनिट, रीकॉम्बीनेंट, पॉलीसेकेराइड, और कॉन्जुगेट वैक्सीन
  • टॉक्साइड वैक्सीन
  • वायरल वेक्टर वैक्सीन

इन-एक्टीवेटेड वैक्सीन (निष्क्रिय वैक्सीन):

इन-एक्टीवेटेड वैक्सीन / निष्क्रिय टीकों में बीमारी वाले रोगाणु के मरे प्रारूप का उपयोग किया जाता है। आमतौर पर निष्क्रिय वैक्सीन, लाईव (जीवित) वैक्सीन की तुलना में कमजोर प्रतिरक्षा (सुरक्षा) प्रदान करती है । इस वजह से हमें समय-समय पर कई अतिरिक्त खुराक (बूस्टर शॉट्स) लेने की आवश्यकता होती है ताकि बीमारियों के खिलाफ हमारी प्रतिरक्षा शक्ति कमज़ोर नहीं हो । निष्क्रिय वैक्सीनका उपयोग इन बीमारियों से बचाव के लिए किया जाता है:

  • रेबीज
  • हेपेटाइटिस ए
  • फ्लू (केवल शॉट)
  • पोलियो (केवल शॉट)

लाइव-अटेन्यूएटेड वैक्सीन (सजीव तनुकृत टीका):

सजीव तनुकृत टीके में रोगाणु के कमजोर प्रारूप का उपयोग किया जाता हैं जो बीमारी का कारण होते है। ये टीके प्राकृतिक संक्रमण से बहुत मिलते-जुलते होते हैं, इसलिये ये एक मजबूत और लंबे समय तक चलने वाली प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया प्रदान करके बीमारी की रोकथाम में मदद करते हैं। अधिकांश सजीव टीकों की सिर्फ 1 या 2 खुराक हमें रोगाणु और इससे होने वाली बीमारी से लम्बी सुरक्षा प्रदान कर सकती है।

सजीव तनुकृत टीकों की भी कुछ सीमाएँ हैं:
  • सजीव टीकों में कमजोर सजीव वायरस की थोड़ी मात्रा होती है, इसलिए कुछ लोगों को जिनका अंग प्रत्यारोपण हुआ हो, कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली हो या दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्याएं हो उन्हे टीका लगाने से पहले अपने डॉक्टर या स्वास्थ्य देखभाल प्रदाता से बात करनी चाहिए।
  • सजीव तनुकृत टीका को एक विशेष तापमान में ठंडा रखने की आवश्यकता होती है, इसलिए वे पारागमन के लिये बहुत उपयुक्त नहीं हैं। इसका मतलब है कि गरम तापमान वाले देशों में जिनके पास रेफ्रिजरेटर के सीमित साधन है वहाँ इस तरह की वैक्सीन का उपयोग बहुत सफल नही हो पायेगा।
  • सजीव तनुकृत टीकों का उपयोग इन बीमारियों के बचाव के लिए किया जाता है:
    चेचक
    छोटी माता (चिकन पॉक्स)
    पीला बुखार
    रोटावायरस
    खसरा, कण्ठमाला (मम्प्स), रूबेला (MMR संयुक्त टीका)

मैसेंजर आरएनए (mRNA)वैक्सीन (टीका):

मैसेंजर आरएनए को mRNAवैक्सीन भी कहा जाता हैं। शोधकर्ता दशकों से mRNA वैक्सीन के ऊपर अध्ययन और शोध कार्य कर रहे है। इस तकनीक का उपयोग कोविड-19 की कई वैक्सीन बनाने के लिए किया गया हैं। mRNA के टीके प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को गति देने के लिए प्रोटीन बनाते हैं। इस वैक्सीन की अन्य प्रकार के टीकों की तुलना में कई लाभ हैं, जैसे कि इस को बनाने में कम समय लगता हैं और इसमें सजीव वायरस नहीं होता है, जिससे टीका लगने वाले व्यक्ति में बीमारी पैदा होने का कोई ख़तरा नहीं होता है।
mRNA वैक्सीन का उपयोग कोविड-19 से बचाव के लिए किया जा रहा है:
फाईज़र-बायोनटेक और मॉडरना कंपनी की कोविड वैक्सीन

सबयूनिट, रीकॉम्बीनेंट, पॉलीसेकेराइड, और कॉन्जुगेट वैक्सीन:

सबयूनिट, रीकॉम्बीनेंट, पॉलीसेकेराइड, और कॉन्जुगेट वैक्सीन रोगाणु के विशिष्ट तत्वों का उपयोग करते हैं - जैसे कि प्रोटीन, चीनी या कैप्सिड (रोगाणु के आसपास का आवरण)। चूँकि ये वैक्सीन रोगाणु के केवल विशिष्ट तत्वों का उपयोग करते हैं, इसीलिए ये बहुत मजबूत प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया देते हैं जो रोगाणु के प्रमुख भागों को लक्षित करते हैं। इनका उपयोग लगभग सभी वैसे लोगों पर किया जा सकता है, जिन्हें इनकी आवश्यकता है, जिनकी प्रतिरक्षा प्रणाली कमज़ोर है या दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्याएं हैं। इन टीकों की एक परिसीमा है और हमें बीमारियों से बचाव के लिए अतिरिक्त खुराक की आवश्यकता हो सकती है।

पॉलीसैक्कराइड य़ह एक जटिल कार्बोहाइड्रेट हैं। इनका निर्माण कई छोटे एकल शर्करा के अणुओं से मिलकर होता है। ये विशाल आकार के अणु हैं। अन्य कार्बोहाइड्रेट की तरह न तो ये जल में घुलनशील हैं न ही इनका स्वाद मीठा होता है।

रीकॉम्बीनेंट तकनीक द्वारा कई स्रोतों से आनुवंशिक सामग्री को एक साथ एकत्रित कर के, ऐसे अनुक्रम बनाते हैं जो जीनोम में नहीं मिलते हैं। ये डीएनए अणु कृत्रिम रूप से प्रयोगशाला में बनाये जाते है।
इन टीकों का उपयोग निम्नलिखित बीमारियों से बचाव के लिए किया जाता है:
दाद
हिब (हीमोफिलस इन्फ्लुएंजा टाइप बी)
एच पी वी (मानव पेपिलोमावायरस)
काली खांसी (DTaP संयुक्त टीके का हिस्सा)
न्यूमोकोकल बीमारी
हेपेटाइटिस बी

टॉक्साइड वैक्सीन:

जिन जीवाणुओं का विष कमजोर हो जाता है पर हानिकारक नही होता है, परंतु उनमें इतनी शक्ति होती है कि वे शरीर की रोग-प्रति रोधक क्षमता में वृद्धि करके, प्रतिरक्षा को बढ़ा करके, जीवाणुओं के विषैले हिस्सों को ही केवल लक्षित कर सकते हैं। टॉक्सॉइड वैक्सीन बनाने में इन जीवाणुओं का विष उपयोग किया जाता है। कुछ अन्य प्रकार के टीकों की तरह इस में भी हमें बीमारियों से लम्बे समय तक बचाव के लिए अतिरिक्त शॉट्स की आवश्यकता हो सकती है।
इस वैक्सीन का उपयोग निम्नलिखित बीमारियों से बचाव के लिए किया जाता है:
डिप्थीरिया
टेटनस

वायरल वेक्टर वैक्सीन:

वायरल वेक्टर टीके सुरक्षा प्रदान करने के लिए विभिन्न वायरसो के संशोधित प्रारूपों को वाहक (वैक्टर) के रूप में उपयोग करते हैं। इबोला के प्रकोप के लिए हाल ही में इस्तेमाल किए गए कुछ टीकों में वायरल वेक्टर तकनीक का उपयोग किया गया है। वायरल वैक्टर में से एक है एडेनोवायरस, जिससे सामान्य सर्दी होती है और जिसका इस्तेमाल कई कोविड-19 टीकों में किया गया है।
इस वैक्सीन का उपयोग निम्नलिखित बीमारियों से बचाव के लिए किया जाता है:
इन्फ्लूएंजा
खसरा वायरस
एडेनोवायरस
वेसक्यूलर स्टामाटाइटिस वायरस (वीएसवी)

टीकों (वैक्सीन) का भविष्य:

वैज्ञानिक नए प्रकार के टीके बनाने के लिए काम कर रहे हैं। उनमें से ये दो मुख्य हैं:
  • डीएनए वैक्सीन
  • रीकॉम्बीनेंट वेक्टर वैक्सीन

डीएनए टीके (वैक्सीन):

डीएनए टीकों में एक विशेष एंटीजन के लिए डीएनए कोडिंग होती है, जिसे सीधे पेशी में इंजेक्ट किया जाता है। डीएनए स्वयं व्यक्ति की कोशिकाओं प्रवेश करके संक्रामक कारको से एंटीजन का उत्पादन करता है। चूंकि यह एंटीजन विदेशी है, इसलिए यह एक प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया उत्पन्न करता है। इस प्रकार के टीकों का लाभ यह है कि डीएनए बहुत स्थिर होते हैं और निर्माण में आसान है। लेकिन ये अभी भी प्रायोगिक चरण में है, क्योंकि संक्रमण को रोकने के लिए आवश्यक पर्याप्त प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया इन डीएनए आधारित टीकों में अभी तक दिखाई नहीं दी। शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि डीएनए के टीके मलेरिया जैसे परजीवी रोगों के खिलाफ प्रतिरक्षा उत्पन्न करने में सक्षम हो सकते हैं लेकिन वर्तमान में, एक परजीवी के खिलाफ कोई मानव टीका नहीं है।

सजीव पुनः संयोजक टीके (वैक्सीन):

इस तकनीक में कमजोर विषाणुओं को रोगवाहक के रूप में उपयोग किया जाता है। एक जीनोम में एक विदेशी डीएनए बीमारी (जैसे कोविड का वायरस का अंश ) का एक अंश प्रविष्ट करते है। अब इस जीनोम को एक प्लास्मिड या वायरस के डीएनए में प्रविष्ट किया जाता हैं। इस तरह एक विदेशी डीएनए को जीनोम को वाहक बना कर मेजबान सेल में प्रवेश करा कर के प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को बढ़ाने के लिए उपयोग किया जाता है।

वायरस के डीएनए के जीन में वे सभी अनिवार्य निर्देश होते हैं जो शरीर को एक निश्चित प्रोटीन बनाने का तरीका बताते हैं। लेकिन यहाँ शोधकर्ता ऐसे जीन का चयन करते हैं जिन में एक खास रोगाणु के लिए विशिष्ट प्रोटीन बनाने के लिए कोड होता हैं। अब इस कोड के द्वारा प्रतिरक्षा प्रणाली (इम्युनोजेन) उस विशिष्ट रोगाणु के लिए एक प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया उत्पन्न करती हैं।

शोधकर्ता सबसे पहले वायरस के डी.एन.ए के उस एक हिस्से की पहचान करते हैं जो प्रतिकृति नहीं बनाती और जिनमें रोगजनकों के इम्युनोजेन्स के लिए कोड हो। अब इन एक या एक से अधिक जीनों को वाहक मे प्रवेश किया जाता हैं। उदाहरण के लिए एक बैक्युलोवायरस (एक वायरस जो केवल कीड़ों को संक्रमित करता है) को एक वाहक (वेक्टर) के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है और एक इन्फ्लूएंजा वायरस की एक विशेष इम्युनोजेनिक सतह प्रोटीन बनाने वाले जीन को उसमें प्रविशिष्ट किया जाता है। जब संशोधित वायरस को किसी व्यक्ति के शरीर में पेश किया जाता है, तो हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली इम्युनोजेन के खिलाफ एक प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया उत्पन्न करती हैं, जो परिणामस्वरूप रोगाणुओं से लड़ती हैं।

नई वितरण तकनीक

जब हम टीकाकरण के बारे में सोचते हैं, तो यह मानते हैं कि एक डॉक्टर या नर्स आ कर हमें टीका देगें। भविष्य में टीकाकरण वितरण के तरीके, आज के तरीके से काफी भिन्न हो सकते हैं। उदाहरण के लिए साँस के द्वारा लेने वाले टीके-जैसे कि इन्फ्लूएंजा के टीके नाक स्प्रे के रूप में बनाए गए हैं। कई टीके एक पैच (पैबंद) के रूप में उपयोग किये जाते हैं। इनमें कई अत्यंत छोटी सुइयों का साँचा बना होता है, जो सिरिंज का उपयोग किये बिना ही लगाया जा सकता है। यह विधि दूरदराज के क्षेत्रों में विशेष रूप से उपयोगी हो सकती है, क्योंकि इसके उपयोग के लिए किसी प्रशिक्षित व्यक्ति की आवश्यकता नहीं होती है, जो आमतौर पर सिरिंज द्वारा टीका देने के लिए आवश्यक होता है।

एक अन्य समस्या जिसे शोधकर्ता संबोधित करने का प्रयास कर रहे हैं वह तथाकथित ठंडे भंडारण (कोल्ड चेन) की समस्या है। कई टीकों को टिकाऊ बने रहने के लिए ठंडे भंडारण तापमान की आवश्यकता होती है। दुर्भाग्य से, दुनिया के कुछ हिस्सों में तापमान नियंत्रित भंडारण अक्सर अनुपलब्ध होता है जो टीकों को सुरक्षित रखने के लिए महत्वपूर्ण है। चेचक उन्मूलन के सफल होने के कारणों में से एक यह भी था कि चेचक के टीके को अपेक्षाकृत उच्च तापमान पर संग्रहित किया जा सकता था, जिससे वह लंबे समय तक टिकाऊ बने रहें। लेकिन कुछ समकालीन टीके ऐसे तापमान का सामना नहीं कर सकते हैं। जैसे कि 2010 में पोलियो वैक्सीन को पश्चिम अफ्रीका में भेजा जा रहा था। उसी समय आइसलैंड़ में ज्वालामुखी का विस्फोट होने की वजह से विमान उड़ान नहीं भर सकते थे। अधिकारियों को ड़र था कि यदि समय पर उड़ान नहीं हो पाई तो 15 मिलियन खुराक बेकार चली जायेगी। ऐसी स्थितियां वैक्सीन सामग्री के विभिन्न तापमान के भंड़ारण की आवश्यकता को उजागर करती हैं।

2010 की शुरुआत में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के जेनर इंस्टीट्यूट के शोधकर्ताओं ने एक अध्ययन किया। उन्होने एक छोटे फिल्टर को चीनी (शक्कर) के शीशे से एकदम पतली झिल्ली की तरह लेपित किया । फिर वायरस को इन फिल्टर से बंद बॉटल में छह महीने के लिए 113 ° F तक के तापमान पर संग्रहीत किया। परीक्षण से देखा गया कि छह महीनों तक वे एकदम ठीक थे। दूसरी तरफ वायरस को एक सप्ताह के लिए 113°F पर तरल भंडारण में रखा गया, तो परीक्षण से पाया गया कि दो वायरसों में से एक अनिवार्य रूप से नष्ट हो गया था।

शोधकर्ता अभी जिस अवधारणा पर काम कर रहे हैं, वह यह हैं कि सबसे पहले वैक्सीन सामग्री को एक खास धारक में और एक सिरिंज में तरल पदार्थ भर कर रखा जाये। फिर अब सिरिंज के अंदर के तरल माध्यम से धारक में रखी हुई वैक्सीन को तैयार करें और मरीज को तुरंत देवें। यह शोध प्रारंभिक चरण में हैं, यह वैक्सीन भंडारण और वितरण के लिए एक आशाजनक नया अवसर प्रदान करेगा। इस तरह की पद्धति से, उन क्षेत्रों में व्यापक टीकाकरण अभियान संभव हो सकता है जहां पहले पहुंचना मुश्किल या असंभव था।

टीकाकरण के भविष्य की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि वह मरीज को देनें में सरल हो, परिवहन के दौरान सभी प्रकार के तापमान से बचा रहें और लंबे समय तक चलने वाली प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया प्रदान करें।

संदर्भ:
microbiologysociety.org
www.britannica.com/science/phagocyte
https://www.historyofvaccines.org/content/articles/future-immunization

Post a Comment
Comments should be on the topic and should not be abusive. The editorial team reserves the right to review and moderate the comments posted on the site.
Advertisement
Advertisement
This site uses cookies to deliver our services. By using our site, you acknowledge that you have read and understand our Cookie Policy, Privacy Policy, and our Terms of Use