मधुमेह और उच्च रक्तचाप आज दुनिया भर की महत्वपूर्ण स्वास्थ्य समस्याओं में से एक हैं। लेकिन एशियाई और भारतीय मूल के लोग हृदय रोग और वसायुक्त या फैटी लीवर रोग से बहुत प्रभावित हैं। इन दोनों का होना एक साथ होना एक प्राणघाती संयोजन का संकेत है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, दुनिया भर में 347 मिलियन लोग मधुमेह से पीड़ित हैं और अकेले भारत में ही 62 मिलियन मधुमेह रोगी हैं।
यह अनुमानित हैं कि अगले 30 वर्षों में विश्व की मधुमेह की संख्या दोगुनी हो जावेगी। यदि इन आंकड़ो को देखा जाये तो वर्ष 2000 में ये 171 मिलियन थे और 2030 तक यह बढ़कर 366 मिलियन हो जाएगें और अधिकतम वृद्धि भारत में होगी। यह अनुमान लगाया गया है कि 2030 तक भारत में मधुमेह मेलिटस 79.4 मिलियन, चीन में 42.3 मिलियन और संयुक्त राज्य अमेरिका में 30.3 मिलियन, व्यक्तियों को पीड़ित कर सकता है।
भारतीय आंकड़े भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसी एमआर) द्वारा किए गए प्रारंभिक परिणामों से पता चला है कि महाराष्ट्र (9.2 मिलियन) और तमिलनाडु (4.8 मिलियन) राज्यों की तुलना में उत्तरी भारत के कुछ राज्य जैसे (चंडीगढ़ 0.12 मिलियन, झारखंड 0.96 मिलियन) में यह अनुपात कम है।
जहां तक उच्च रक्तचाप की बात है, दुनिया में एक अरब लोगों को उच्च रक्तचाप है और 31 से 76 मिलियन भारतीय इससे प्रभावित हैं। उचित चिकित्सीय जांच के अभाव में मधुमेह और उच्च रक्तचाप दोनों की कई वर्षों तक पहचान नहीं हो पाती है और दोनों ही (हृदय रोग, स्ट्रोक, गुर्दे की विफलता और संक्रमण ) मृत्यु के प्रमुख जोखिम कारक हैं। अफसोस की बात है कि इन दोनों बीमारियों को बेहतर आहार (कम और स्वस्थ भोजन) और नियमित व्यायाम के माध्यम से काफी हद तक रोका जा सकता है।
मधुमेह और उच्च रक्तचाप की रोकथाम हर देश की स्वास्थ्य देखभाल प्राथमिकताओं में सबसे आगे होनी चाहिए। क्योंकि, ये प्रारंभिक अवस्था में उपचार योग्य हैं और समय पर रोकथाम से, मानवीय पीड़ाऔर लंबे समय तक होने वाले स्वास्थ्य देखभाल व्यय को बहुत कम किया जा सकता है।
आर्थिक रूप से उन्नत देशों के लोगों की तुलना में, भारतीयों की मधुमेह और उच्च रक्तचाप की जटिलताओं से औसतन उम्र दस साल कम हो जाती हैं। इसके अलावा, कई पीढ़ियों से विदेशों में रहने वाले भारतीयों में, इन बीमारियों के शिकार होने की संभावनायें बनी हुई हैं, जो आनुवंशिक प्रवृत्ति की ओर इंगित करती हैं।
भारतीय समाज के आंकड़े चौंकाने वाले है अकेले कोरोनरी धमनी की बीमारी से प्रति वर्ष 2.6 मिलियन मौतें होती हैं।
मधुमेह और उच्च रक्तचाप स्ट्रोक, फैटी लीवर, गुर्दे की विफलता, अंधापन और गैंग्रीन (अंग का काटना) आदि की जोखिम को बढ़ाते हैं, इसलिए मृत्यु की कुल संख्या और लोगों की पीड़ा की मात्रा बहुत अधिक है।
यह अनुमान लगाया गया है कि लगभग 20% से 60% या इस से भी अधिक मधुमेह संबंधी जटिलताएँ, उच्च रक्तचाप के कारण होती हैं। मधुमेह के व्यक्तियों में उच्च रक्तचाप का प्रसार, सामान्य समान आयु-समूहों की तुलना में 1.5 से 3 गुना अधिक होता है। मधुमेह और उच्च रक्तचाप दोनों से पीड़ित लोगों में हृदय रोग, दिल का दौरा और स्ट्रोक होने का जोखिम लगभग दोगुनी होती है।
ये दोनों रोग पुरुषों, वृद्धों और अविवाहितों में अधिक आम हैं, जो कम पढ़े-लिखे हैं और कम कमाते हैं, उनमें भी अधिक जोखिम होती है। यह स्पष्ट नहीं है कि मधुमेह और उच्च रक्तचाप का संबंध व्यक्ति विशेष के रहन-सहन से जुड़ा हुआ है या नहीं।
मधुमेह के दो मुख्य प्रकार हैं-
प्रथम चरण (टाइप 1 ) का मधुमेह (10%रोगी), शरीर की अपनी प्रतिरक्षा प्रणाली द्वारा अग्न्याशय की कोशिकाओं पर एक ऑटोइम्यून हमले के कारण होता है, जो इंसुलिन (लैंगरहैंस के आइलेट्स) का उत्पादन करता है। प्रथम चरण मधुमेह का संबंध उम्र के शुरुआती दिनों और गंभीर लक्षणों से जुड़ा हुआ है , जिसमें मधुमेह प्रबंधन के लिए हमेशा इंसुलिन इंजेक्शन लेने की आवश्यकता होती है।
दूसरे चरण (टाइप 2 ) का मधुमेह (90% मामलों में) असंतुलित आहार और शारीरिक गतिविधि की कमी के कारण होता है, जिसके परिणामस्वरूप शरीर में इंसुलिन के प्रसार के सामान्य स्तर का प्रतिरोध होता है। दोनों प्रकार का कारण आनुवंशिक घटक होते हैं, लेकिन प्रथम चरण मधुमेह को अधिक आनुवंशिक रूप से संचालित माना जाता है और दूसरे चरण को पर्यावरण या जीवन शैली की बीमारी के रूप में अधिक माना जाता है। असंतुलित आहार विशेष कर अधिक शर्करा और कार्बोहाइड्रेट वाले खाद्य पदार्थ और नियमित शारीरिक गतिविधि की कमी के कारण, दुनिया में दूसरे चरण के रोगी अधिक पाये जाते हैं।
प्राथमिक उच्च रक्तचाप : 95% मामलों में उच्च रक्तचाप का कारण अज्ञात होता है। इस प्रकार को "आवश्यक" या "प्राथमिक" उच्च रक्तचाप के रूप में जाना जाता है।
माध्यमिक उच्च रक्तचाप: यह तब होता है जब कोई ज्ञात कारण होता है, जैसे कि गुर्दे को रक्त की आपूर्ति करने वाली धमनियों का एथेरोस्क्लोरोटिक संकुचन (रिनो वैस्कुलर हाइपरटेंशन), थायरॉयड रोग, या अधिवृक्क ग्रंथि ट्यूमर।
अक्सर उच्च रक्तचाप के इन अंतर्निहित कारणों का इलाज किया जा सकता है या ठीक भी किया जा सकता है।असंतुलित आहार, शारीरिक गतिविधि और कुछ आनुवंशिक प्रवृत्ति आदि महत्वपूर्ण जोखिम कारक हैं, जैसे कि दूसरे चरण मधुमेह के मामले में होते हैं। उदाहरण के लिए, अत्यधिक नमक का सेवन, भावनात्मक तनाव और अपर्याप्त व्यायाम इत्यादि जिसे स्वस्थ आहार और नियमित व्यायाम के सख्त पालन से इस की रोकथाम आसानी से की जा सकती है।दूसरे चरण (टाइप 2) मधुमेह के रोगियों में उच्च रक्तचाप बेहद आम है और उन्हें अपने उच्च रक्तचाप के इलाज के लिए आमतौर पर दो या दो से अधिक दवाओं की आवश्यकता होती है। उच्च रक्तचाप के इलाज के लिए अनेक संयोजित दवाओं के बावजूद भी कई मधुमेह रोगी ¡Ü130/80 एम.एम एचजी के लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाते हैं। उच्च रक्तचाप और मधुमेह वाले रोगियों में अस्वस्थता और मृत्यु दर को कम करने के लिए रक्तचाप का सामान्य होना बहुत महत्वपूर्ण है।
मधुमेह और उच्च रक्तचाप दोनों अपने प्रारंभिक चरण में लक्षणहीन होते हैं, इसलिए नियमित अंतराल पर शारीरिक परीक्षण करना बहुत जरूरी हैं, जिस से समय पर चिकित्सा सहायता प्राप्त कर के, इन परेशानीयों से बचा जा सके।
मधुमेह के महत्वपूर्ण लक्षण निम्न है:
अत्यधिक उच्च रक्त शर्करा का स्तर कोमा और एसिडोसिस (उच्च रक्त अम्लता) का कारण बन सकता है, जबकि अत्यधिक निम्न रक्त शर्करा का स्तर कमजोरी, चक्कर आना, पसीना और यहां तक कि मृत्यु का कारण बन सकता है, यदि जल्दी से इलाज न किया जाए।
उच्च रक्तचाप के लक्षण निम्न है:
हालांकि उच्च रक्तचाप लगभग हमेशा लक्षणहीन होता है। इसलिए उच्च रक्तचाप को अक्सर चुपचाप मारने वाला या "साइलेंट किलर" के रूप में जाना जाता है।
उच्च रक्तचाप के कारण महत्वपूर्ण अंगों को नुकसान होता हैं , जैसे कि सीने में दर्द, क्षणिक अंधापन ("एमोरोसिस फुगैक्स" सेरेब्रोवास्कुलर रोग का संकेत); मतली, थकान, पेशाब में कमी (गुर्दे की विफलता ); या लंबे समय तक अनियंत्रित अज्ञात बीमारी इसके परिणाम हैं।
नियमित परीक्षण इन दोनों स्थितियों का निदान कर सकते हैं। हालांकि मूत्र में प्रोटीन देखने के लिए ‘C’ मूत्र परीक्षण (माइक्रो-एल्ब्यूमिन्यूरिया) नियमित रूप से किया जाना चाहिए। मूत्र में प्रोटीन की उपस्थिति न केवल मधुमेह की गुर्दे की बीमारी के जोखिम का संकेत देती है, बल्कि हृदय संबंधी जानलेवा बिमारी को भी इंगित करती है।
रक्त प्रवाह में ग्लूकोज की मात्रा को मापने के लिए परिक्षण तीन तरीकों से किया जाता हैं-
मधुमेह के प्रथम चरण और दूसरे चरण के अंतर को, इंसुलिन या "सी-पेप्टाइड" के स्तरों का अध्ययन करने से समझा जा सकता है, प्रथम चरण में स्तर कम और दूसरे चरण में स्तर सामान्य होगा। इसके अलावा, "हीमोग्लोबिन A1C"का स्तर (एक चीनी लेपित हीमोग्लोबिन अणु) को लंबे समय तक औसत रक्त शर्करा के स्तर की पहचान करने के लिए मापा जाता है। यह परीक्षण चिकित्सा में होने वाले परिवर्तन का मार्गदर्शन करने में मदद करता है और यह इस बात का भी संकेतक है कि कोई व्यक्ति अपनी मधुमेह की दवाओं को लेने में कितना नियमित हैं।
उच्च रक्तचाप को सबसे सरलता से या तो एक हस्तचालित या स्वचालित ब्लड प्रेशर कफ से मापा जाता है। यहां तक कि हस्तचालित रक्तचाप यंत्र को एक गैर-चिकित्सीय कर्मियों को भी आसानी से सिखाया जा सकता है, लेकिन स्वचालित कफ अधिक लोकप्रिय हैं क्योंकि उनमें त्रुटि की संभावना कम होती है (लेकिन उनका अक्सर समायोजन करना चाहिए)।
यह महत्वपूर्ण है कि हम किसी एक ब्लड प्रेशर रीडिंग (व्याख्या) पर निर्भर न रहें। क्योंकि एक सामान्य रक्तचाप रीडिंग किसी की जलयोजन स्थिति (निर्जलीकरण ‘निम्न रक्तचाप’ का कारण बनता है) या चिंता के स्तर से प्रभावित हो सकती है (डॉक्टर से मुलाकात करने की सोच से "व्हाइट कोट सिंड्रोम", या घबराहट ‘उच्च रक्तचाप’ का कारण बन सकती है) और यह जरूरी नहीं कि इनका हमारी अंतर्निहित बीमारी से कोई संबंध हो। कई लोगों में, विशेष रूप से खिलाड़ीयों और महिलाओं में रक्तचाप कीआधार रेखा कम होती हैं।
माध्यमिक उच्च रक्तचाप का निदान करने के लिए अधिक परिष्कृत इमेजिंग (एक्स-रे जैसी) परीक्षणों की आवश्यकता होती है (उदाहरण के लिए रेनो संवहनी उच्च रक्तचाप के लिए एंजियोग्राम या अधिवृक्क ट्यूमर के लिए एमआरआई / सीटी स्कैन)इत्यादि। जब तक हमें बुनियादी रक्त रसायन परीक्षणों द्वारा क्रिएटिनिन, सोडियम, पोटेशियम, आदि में असामान्यताओं का पता नहीं लग जाता है, तब तक इन परीक्षणों को नहीं किया जाना चाहिए।
उच्च रक्तचाप से ग्रस्त मधुमेह रोगियों के प्रबंधन में रक्तचाप को 130/80 एम.एम एचजी से कम करना प्राथमिक लक्ष्य होना चाहिए। आमतौर पर इस तरह के उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करने के लिए एक से अधिक दवाओं के संयोजन की आवश्यकता होती है।
प्रथम चरण के मधुमेह रोगियों को सामान्य रक्त शर्करा का स्तर बनाए रखने के लिए निरंतर नियमित तौर पर इंसुलिन इंजेक्शन की आवश्यकता होती है। हमारे पास ऐसे इंसुलिन पंप हैं जो त्वचा के नीचे निरंतर इंसुलिन का संचार आवश्यकता के अनुसार कर सकते हैं। लेकिन ग्लूकोज की संवेदनशीलता मापने की तकनीक जो आज उपलब्ध है, वह अभी ग्लूकोज की मात्रा के आधार पर "वास्तविक समय" में इंसुलिन के संचार को कम ज्यादा करने की अनुमति नहीं देती है।
अग्न्याशय प्रत्यारोपण एक विकल्प है और अक्सर गुर्दे के प्रत्यारोपण ("संयुक्त किडनी/अग्न्याशय प्रत्यारोपण") के साथ मिलकर किया जाता है और इस के परिणाम काफी अच्छे होते हैं (70% लोग दस वर्ष तक जीवित रहते हैं)। हालांकि अग्न्याशय प्रत्यारोपण मधुमेह प्रथम चरण के लिए एक अच्छा इलाज है, लेकिन यहअत्यधिक चयनित, "नियर परफेक्ट" मामलों के लिए आरक्षित है। क्योंकि रोज इंसुलिन लेने की तुलना में, इंसुलिन प्रतिस्थापन का विकल्प एक बड़ी जानलेवा सर्जरी और बाद में आजीवन इम्यूनोसप्रेशन से होने वाले संक्रमणों की बहुत अधिक जोखिम से भरा हुआ होता है। प्रथम चरण मधुमेह रोगियों के लिए एक अंतिम उपचार विकल्पपैनरियाटिक आइलेट सेल इन्फ्यूजन’ है। वर्तमान में वैज्ञानिक साहित्य में प्रकाशित शोध-पत्रों में इसके खराब दीर्घकालिन परिणामों को देखते हुए, इस चिकित्सा को अभी भी अपने प्रयोगात्मक चरण में ही माना जा रहा हैं।
दूसरे चरण के मधुमेह की रक्त शर्करा के स्तर को सामान्य श्रेणी में रखने के लिए को अक्सर आहार में हेरफेर कर के, मौखिक दवाओं के साथ या बिना दवाईयों द्वारा प्रबंधित किया जा सकता है। मौखिक मधुमेह की दवाओं में मेटफॉर्मिन, ग्लिपिज़ाइड, ग्लाइबराइड, रेपैग्लिनाइड, नैटग्लिनाइड, पियोग्लिटाज़ोन सिटाग्लिप्टिन और उनके संयोजन शामिल हैं। अधिक उन्नत मामलों में इंसुलिन इंजेक्शन की आवश्यकता होती है। आकंड़ों से इस बात की प्रमाणिकता बढ़ गई हैं कि मोटे व्यक्तियों में वजन घटाने की सर्जरी (गैस्ट्रिक बाईपास या लैप्रोस्कोपिक गैस्ट्रिक बैंडिंग) से मधुमेह को नियंत्रित किया जा सकता हैं, साथ ही व्यायाम और आहार संबंधी सही नियमों को पालन करने से मधुमेह को प्रबंधित करने में काफी सफलता मिलती है। टाइप 2 मधुमेह के लिए अग्न्याशय प्रत्यारोपण की सलाह नहीं दी जाती है, क्योंकि अंतर्निहित समस्या इंसुलिन प्रतिरोध है, इसलिए दूसरे अग्न्याशय का प्रत्यारोपण करके इंसुलिन की मात्रा को बढ़ाने में मदद नहीं मिलेगी।
उच्च रक्तचाप का सफलतापूर्वक कई दवाओं के साथ इलाज किया जाता है, जिन्हें अक्सर अधिकतम प्रभावकारिता और न्यूनतम दुष्प्रभाव को प्राप्त करने के लिए संयोजित रूप में दिया जाता है। रोग को रोकने और कम गंभीर बीमारी के प्रबंधन के लिए आहार संबंधी उपाय (विशेष रूप से बहुत अधिक नमक से परहेज) और व्यायाम महत्वपूर्ण हैं, लेकिन अक्सर दवाओं की आवश्यकता होती है। उच्च रक्तचाप के प्राकृतिक उपचार, जैसे आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों को उच्च रक्तचाप के इलाज के रूप में प्रस्तावित किया गया है। लेकिन ऊपर वर्णित जीवनशैली में बदलाव और एलोपैथिक दवाओं के अलावा उच्च रक्तचाप के प्रबंधन में, अन्य उपचारों के विषय में वैज्ञानिक प्रमाणों की कमी है। उच्च रक्तचाप के प्रबंधन के जो दिशा निर्देश दिये गये हैं और कई नैदानिक परीक्षणों (जैसे एन.आई.सी.ई) के साक्ष्य के आधार पर ही डॉक्टरों को एक व्यक्तिगत आधार-तालिका की रूप-रेखा तैयार करनी चाहिए। और यह भी महत्वपूर्ण है कि रोगी अपनी दवाएं निर्देशन के अनुसार ही लें। यदि कोई अवांछित दुष्प्रभाव होता है, तो रोगी तुरंत डॉक्टर के साथ इस पर चर्चा करे, क्योंकि वैकल्पिक उपचार उपलब्ध हैं, जिन्हें किसी भी व्यक्ति की आवश्यकता के अनुरूप बनाया जा सकता है।
हृदय रोग- इन दोनों से ग्रस्त रोगियों में केवल उच्च रक्तचाप या मधुमेह से पीड़ित लोगों की तुलना में ओर हृदय के बाएं निलय में अतिवृद्धि (लैफ्ट वैंट्रीक्युलर हॉयपरट्रॉफी) और कोरोनरी धमनी रोग होने की संभावना अधिक होती है।
गुर्दा, आंखें और मस्तिष्क - उच्च रक्तचाप और मधुमेह की संयुक्त उपस्थिति गुर्दे के कार्य में कमी, मधुमेह रेटिनोपैथी और मस्तिष्क रोगों के विकास में वृद्धि करती है।
यौन रोग - मधुमेह के उच्च रक्तचाप वाले पुरुषों और महिलाओं दोनों में यौन रोग का खतरा बढ़ जाता है। अधिकांश रक्तचाप की दवाओं के दुष्प्रभाव से नपुंसकता होती है।