डायबिटीज मेलिटस, अग्न्याशय में इंसुलिन पैदा करने वाली बीटा कोशिकाओं के स्व-प्रतिरक्षा (ऑटोइम्यून) के विनाश के कारण टाइप-1 होता है और परिधीय जीवकोषीय (पैरिफ्रल सेलुलर) द्वारा परिसंचारी इंसुलिन के लिये, किये जाने वाले प्रतिरोध के कारण टाइप-2 मधुमेह होता है और इसकी विशेषता है कि रक्त और मूत्र में ग्लूकोज का संचय होना। यह स्थिति कार्बोहाइड्रेट, वसा और प्रोटीन के चयापचय में गड़बड़ी का भी परिणाम है, जिसके परिणामस्वरूप खराब हुआ इंसुलिन स्राव होता है। टाइप-1 मधुमेह को हमेशा प्रशासन के विभिन्न मार्गों (आमतौर पर त्वचा के नीचे एक सुई से) के माध्यम से नियमित इंसुलिन और अन्य दवाईयों के साथ प्रबंधन की आवश्यकता होती है और गंभीर टाइप-2 मधुमेह रोगियों को अक्सर इंसुलिन थेरेपी की भी आवश्यकता होती है।
दवा वितरण प्रणाली दवा के सेवन के दुष्प्रभाव, मात्रा या खुराक और आवृत्ति को कम करने के लिए हाल ही में हुई नई प्रगतियों में से एक है। विकसित दवा वितरण प्रणालियाँ शरीर के भीतर के लक्षित अंग, ऊतक या कोशिकाओं को पूर्व-निर्दिष्ट तरीके से, निर्धारित स्थान पर और दीर्घकालीन समय तक दवा पहुँचाने में मदद करता हैं, वह भी अन्य अंगों या ऊतकों को प्रभावित किए बिना ही।
इंसुलिन को विभिन्न प्रकार के दवा वाहकों और दवा वितरण के विभिन्न मार्गों के संयोजन से प्रशासित किया जा सकता है।
मधुमेहीयों में सबसे आम और पारंपरिक तरीका हैं इंजेक्शन के माध्यम से, त्वचीय इंसुलिन का सेवन। लेकिन, यदि कई खुराको की आवश्यकता होती है, तो यह अक्सर रोगियों के लिए यह बहुत दर्दनाक होता है। इंजेक्शन, विशेष रूप से दिन में एक से अधिक बार, असुविधाजनक, स्थानीय दर्द, जलन, संक्रमण, लिपोआट्रोफी आदि का कारण बन सकता है। इंसुलिन की कई खुराक से हाइपोग्लाइसेमिक धटना की जोखिम होती हैं, यदि बहुत अधिक मात्रा में इंसुलिन प्रशासित किया जाता है तो। यदि तुरंत चिकित्सा नहीं दी गई तो अधिक हाइपोग्लाइसीमिया जीवन के लिए खतरा बन सकता है।
इन्सुलिन का मौखिक वितरण यह सुनिश्चित करता हैं कि वह पेट के खतरनाक पीएच और गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट में निहित एंजाइमों द्वारा किये जाने वाले प्रोटियोलिसिस से बच कर, इन्सुलिन आंत से अवशोषित कर के सीधे लीवर में पहंचाये। विकसित दवा वितरण प्रणाली को इन बाधाओं को दूर करने की दिशा में काम करना होगा।
शरीर में इंसुलिन के वितरण के लिए कई तरह के वाहको की खोज की गई है, उनमें से कुछ निम्न हैं-
हाइड्रोजेलस (जलीयजैल): ये मनुष्यों के रक्त और ऊतक के साथ अत्यंत संगत हैं और व्यापक रूप से नरम संपर्क लेंस, कोटिंग ड्रेसिंग और आयन-एक्सचेंज झिल्ली और अन्य उत्पादों को तैयार करने में उपयोग किये जाते है जो मानव शरीर के करीब रहते हैं । वे क्रॉस-लिंक्ड पॉलीमेरिक मैट्रिसेस हैं जो बड़ी मात्रा में पानी को अवशोषित करते हैं और फूल जाते हैं।
स्थान-विशिष्ट में दवा सन्निविष्ट करने और ऊतक लक्ष्यीकरण के उपयोग के लिए हाइड्रोजेल का अध्ययन किया जा रहा है। वैज्ञानिक हड्डी, उपास्थि और मांसपेशियों के ऊतकों को बदलने के लिए ऊतक के विकल्प में हाइड्रोजेल के उपयोग की संभावना का अध्ययन कर रहे हैं। तापमान, पीएच, आयनिक शक्ति और बफर संरचना जैसी स्थितियों के हिसाब में हाइड्रोजेल फूल या सिकुड़ जाते हैं। दवा को हाइड्रोजेल में समाविष्ट कर के,धीमी गति से दिया जाता है तो प्रतिक्रिया तुरंत होती है। हाइड्रोजेल का उपयोग वाहक के रूप में किया जा सकता है जो सन्निविष्ट करने के विभिन्न मार्गों जैसे मौखिक, बुक्कल (मुख के अंदर के दाँच, कपोल आदि), इंजेक्शन आदि के माध्यम से प्रशासित होता है।
पॉलीमेरिक नैनोपार्टिकल्स(बहुरूपीय नैनोअणु) : पॉलीमेरिक नैनोपार्टिकल्स दो प्रकार के होते हैं: नैनोस्फियर और नैनोकैप्सूल। नैनोस्फीयर का अर्थ हैं नैनोअणुओं का वृत्त। नैनोस्फीयर में दवा एक समान रूप से नैनोस्फीयर मैट्रिक्स सिस्टम (नैनोअणुओं के वृत्त के आव्यूह साँचे) में फैल जाती है, जबकि नैनोकैप्सूल में दवा एक बहुरूपीय झिल्ली से घिरे गुहा तक ही सीमित रहती है। बहुरूपीय नैनोअणु दवा को लक्षित ऊतक तक ले जाते हैं और निर्धारित किये गए वातावरण में लक्षित अंग में घुल जाते हैं और दवा को उसमें छोड़ देते हैं। पॉलिमरिक नैनोकणों में कम साइटॉक्सिसिटी होती है और इसे रोगी की जरूरतों के हिसाब से अनुकूलित किया जा सकता है, जिससे लक्षित स्थान पर दवा की निर्धारित मात्रा वांछित स्थान पर पहुँच सके।
पॉलीमेरिक नैनोकणों को रक्त शर्करा के स्तर की वृद्धि को कम करने के लिए संयोजित किया जा सकता है, जिससे नैनोपोरस मेम्ब्रैन (झिरझिरी झिल्ली) बायोडिग्रेड (जैवनिम्नीकरण) हो कर, रक्त में इंसुलिन छोड़ती है।
सिरेमिक नैनोपार्टिकल्स: सिलिका, एल्यूमिना, टाइटेनियम और कैल्शियम फॉस्फेट जैसी सामग्री का उपयोग सिरेमिक नैनोकणों को इंसुलिन के वाहक के रूप में कार्य करने के लिए किया जाता है। वे अत्यधिक जैव-संगत हैं, आकार में बहुत छोटे हैं और अच्छी आयामी स्थिरता रखते हैं। उन्हें आवश्यक आकार और सरंध्रता के साथ निर्मित किया जा सकता है। सिरेमिक नैनोकणों के वितरण के सबसे सफल मार्ग पैरेंटेरल (अंतःशिरा, इंट्रामस्क्युलर या त्वचीय) सन्निविष्ट और सुंघने वाली (इनहेलेबल) दवाईयाँ हैं।
गोल्ड नैनोपार्टिकल्स: सोना एक ऐसी धातु है जिससे शरीर में एलर्जी की प्रतिक्रिया की जोखिम अत्यधिक कम होती है। सोने के नैनोकणों में दीर्घकालिक स्थिरता होती है और यह इंसुलिन को जमा कर के, मौखिक और नाक के श्लेष्मा अस्तर में इंसुलिन के उच्च अवशोषण को सक्षम बनाते है। हालांकि, वे यकृत, प्लीहा, गुर्दे, हृदय, आदि जैसे अंगों में संन्निवीष्ट होने में सक्षम नहीं हैं। इनमें हड्डियों के जोड़ों और अंगों में जमा होने की प्रवृत्ति भी होती है।
ग्लूकोज के प्रति संवेदनशील पॉलीमेरिक इंसुलिन इन्फ्यूजन डिवाइस: सीरम ग्लूकोज के स्तर के जवाब में रक्त में उचित इंसुलिन के स्तर को गतिशील रूप से बनाए रखना दवा वितरण प्रणाली का मुख्य उद्देश्य है। रक्त में अतिरिक्त इंसुलिन विषाक्त या कभी-कभी घातक हो सकता है और पर्याप्त इंसुलिन की कमी रक्त शर्करा के स्तर को एसिडोसिस (उच्च रक्त अम्लता स्तर) और कोमा का कारण बन सकती है। स्व-नियामक तंत्र के आधार पर इंसुलिन पहुंचाने के लिए उपकरणों की विविधता इंसुलिन वितरण प्रणाली में सबसे अधिक शोध का विषय है।
लिपोसोम: लिपोसोम लिपिड या वसा की एक दोहरी परत होती है, जो दवाओं सहित छोटे अणुओं को घेर लेती है। दवा वितरण प्रणालियों में उपयोग के लिए उनका व्यापक रूप से शोध किया गया है। लिपिड जलीय घोल या पानी आधारित घोल की मात्रा को घेरते हैं। वे जैविक-संगत (बायोकंपैटिबल) हैं, पूरी तरह से बायोडिग्रेडेबल और गैर विषैले हैं। हालांकि, उनकी अपर्याप्त स्थिरता जैसी सीमाएं हैं।
आयनटोफोरेसिस और सोनोफोरेसिस: आयनटोफोरेसिस विद्युत प्रवाह का उपयोग, लक्षित स्थान पर दवा की पारगम्यता या प्रवेश में सुधार करने के लिए करती है। ट्रांसडर्मल आयनटोपोरिसिस गैर-आक्रामक है और इसका उपयोग निरंतर या स्पंदनशील (समय के लगातार अंतराल पर दवा जारी करना) दवा वितरण या संन्निविष्ट के लिए किया जा सकता है।
सोनोपोरेसिस तरीके में लक्ष्य स्थल पर दवाओं के वितरण और गतिविधि को बढ़ाने के लिए अल्ट्रासाउंड का उपयोग किया जाता है। स्टेरॉयड जैसे छोटे हाइड्रोफोबिक अणुओं की चिकित्सीय खुराक को अल्ट्रासाउंड का उपयोग करके त्वचा में डाला जाता है। कम आवृत्ति वाले (लो फ्रीक्वन्सी) अल्ट्रासाउंड को उच्च आवृत्ति की तुलना में अधिक प्रभावी पाया गया है।
इंसुलिन दवाओं और वाहकों का मौखिक वितरण: मौखिक इंसुलिन दवा वितरण, सबसे पसंदीदा तरीका है क्योंकि यह सुविधाजनक, गैर-आक्रामक और रोगी की जीवन शैली में शामिल करने में आसान है। कई इंजेक्शन या लगातार इंसुलिन लेना, मरीजों को दर्दनाक और भारी लगता है। इंसुलिन एक प्रोटीन है और यह पेट के एसिड और आंत के ऊपरी हिस्से द्वारा निष्क्रिय हो सकता है। इसलिये एक वाहक प्रणाली के साथ इंसुलिन की रक्षा करना आवश्यक है ताकि यह आंत के अम्लीय और प्रोटियोलिटिक बाधाओं को पार कर सके और आंतों की रक्त आपूर्ति में अवशोषित हो सके।
आंखों से प्रशासन (ऑक्युलर): इंसुलिन प्रशासन का नेत्र मार्ग गैर-आक्रामक है। दवा बिना किसी प्रतिरोध के, आंख के ऊतकों द्वारा आसानी से अवशोषित हो जाती है। यह जठर-संबंधित (गैस्ट्रिक सिस्टम), अम्लीय प्रभावों को भी दर किनारे कर के दूसरे मार्ग (बायपास) से इंसुलिन को संन्निविष्ट करता है। यह पाया गया कि आई ड्रॉप के रूप में दिया जाने वाला इंसुलिन रक्त शर्करा के स्तर में उतार-चढ़ाव की जोखिम के बिना, इंसुलिन के प्रणालीगत वितरण को लंबा करता है।
त्वचीय मार्ग (ट्रांसडर्मल) द्वारा दवा सन्निविष्ट प्रणाली (ट्रांसडर्मल ड्रग डिलीवरी सिस्टम): त्वचीय मार्ग द्वारा दवा सन्निविष्ट प्रणाली के हालिया रुझानों में वाहकों के साथ-साथ इंसुलिन के त्वचीय छेदन (एपिक्यूटेनियस ) प्रशासन का उपयोग शामिल है। त्वचीय छेदन (एपिक्यूटेनियस ) प्रशासन में त्वचा की सतह पर छोटे-गेज सुइयों द्वारा का उथले और रक्तहीन भेदन से इंसुलिन को सन्निविष्ट किया जाता हैं, जो इंजेक्शन औरअन्य प्रणालीयों की तुलना में सरल हैं।