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ममधुमेह - रक्त शर्करा की स्व-निगरानी (एसएमबीजी)

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खून में ग्लूकोज़ की जांच क्यों करनी चाहिए?

कड़ा रक्त शर्करा नियंत्रण, जोखिम को कम करता है और मधुमेह से संबंधित जटिलताओं की शुरुआत को विलम्बित करता है।

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कई अध्ययनों ने इस बात पर जोर दिया है कि रक्त शर्करा की नियमित और लगातार स्व-निगरानी सभी मधुमेह प्रबंधन कार्यक्रमों का एक हिस्सा होना चाहिए। सख्त रक्त ग्लूकोज नियंत्रण, जोखिम को कम करने के साथ मधुमेह से संबंधित जटिलताओं जैसे कि रेटिनोपैथी, न्यूरोपैथी, दिल का दौरा, और नेफ्रोपैथी आदि की शुरुआत में देरी करता है, जिससे रोगी को अत्यधिक लाभ होता है।

मधुमेह से ग्रसित अधिकांश लोगों की यह धारणा होती है कि एक बार डॉक्टर द्वारा दवा को समायोजित करने के बाद, रक्त शर्करा का स्तर कुछ महीनों तक अपरिवर्तित रहता है। हालांकि, ऐसा नहीं है क्योंकि ऐसे कई परिवर्ती कारक हैं जो रक्त शर्करा के स्तर को हर मिनट प्रभावित करते हैं। हालांकि, शरीर इन उतार-चढ़ावों को एक संकीर्ण दायरे में रखता है। इन उतार-चढ़ावों को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारक इस प्रकार हैं:

भोजन: हर समय एक ही प्रकार का और एक ही मात्रा में भोजन करना संभव नहीं है। भोजन में विभिन्न घटक होते हैं और कार्बोहाइड्रेट मुख्य रूप से रक्त शर्करा के स्तर में भिन्नता के लिए जिम्मेदार होते हैं। भोजन में मौजूद कार्बोहाइड्रेट ग्लूकोज में परिवर्तित हो जाते हैं। जिस दर पर यह रूपांतरण होता है वह कण के आकार के साथ-साथ अन्य घटकों की उपस्थिति या अनुपस्थिति पर निर्भर करता है, जैसे कि फल खाने की तुलना में, फलों के रस से रक्त में ग्लूकोज बहुत तेजी से बढ़ती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि रस फाइबर से रहित है - और फाइबर वह घटक हैं जो रक्त शर्करा को नीचे रखता है। इसी तरह, आहार में प्रोटीन की उपस्थिति, कार्बोहाइड्रेट की तुलना में रक्त शर्करा के स्तर धीमी गति से बढ़ाती है।

इंसुलिन: एक गैर-मधुमेह वाले व्यक्ति में, भोजन यानी कार्बोहाइड्रेट की उपस्थिति में शरीर में इंसुलिन का स्राव होता है। इससे ब्लड ग्लूकोज लेवल कंट्रोल में रहता है। मधुमेह वाले व्यक्ति में जहां या तो कम इंसुलिन स्रावित होता है या कोशिकाएं इंसुलिन के लिए प्रतिरोधी होती हैं, इसलिये इंजेक्शन की आवश्यकता होती है। इंसुलिन इंजेक्शन के समय और मात्रा को इस तरह से समायोजित किया जाना चाहिए कि किसी भी समय रक्त शर्करा न तो बहुत अधिक हो और न ही बहुत कम हो। इंजेक्शन के बाद मानव शरीर द्वारा अवशोषित इंसुलिन की मात्रा दिन-प्रतिदिन 25% तक भिन्न हो सकती है। इसके कई कारण हैं जैसे -

  • इंसुलिन इंजेक्शन की साइट - यदि दैनिक इंजेक्शन के लिए एक ही जगह का उपयोग किया जाता है तो अवशोषण की दर कम होती है।
  • यदि इंसुलिन को पेट में इंजेक्ट किया जाता है, तो अवशोषण की दर जांघ में इंजेक्शन लगाने की तुलना में तेज होती है।
  • इंसुलिन के अवशोषण की मात्रा , शरीर का वह हिस्सा जहां इंसुलिन दिया जाता है उस हिस्से के द्वारा की जाने वाली शारीरिक गतिविधि पर निर्भर करती है। उदाहरण के लिए, यदि ज़ोरदार व्यायाम के बाद इंसुलिन को हाथ में इंजेक्ट किया जाता है तो - इंसुलिन के अवशोषण की दर काफी अधिक होगी।
  • व्यायाम: व्यायाम के दौरान जो मांसपेशियां काम कर रही होती हैं, उन्हें ग्लूकोज को ईंधन के रूप में इस्तेमाल करना पड़ता है और इससे शरीर में ग्लूकोज का स्तर कम हो जाता है। व्यायाम विशेष रूप से मांसपेशियों में इंसुलिन संवेदनशीलता को भी बढ़ाता है, यानी ग्लूकोज को कोशिका में धकेलने के लिए कम इंसुलिन की आवश्यकता होती है। जिस दिन कम या कोई व्यायाम नहीं होता है, उस दिन इंसुलिन की आवश्यकता बढ़ सकती है और इसलिए रक्त शर्करा के स्तर में भिन्नता होती है।
  • तनाव:आधुनिक समय में यह शायद सबसे महत्वपूर्ण कारकों में से एक है और दुनिया में मधुमेह और हृदय रोगों की घटनाओं की वृद्धि के लिए जिम्मेदार हो सकता है। तनाव से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए शरीर द्वारा कुछ हार्मोन जारी किए जाते हैं जो रक्त शर्करा के स्तर को उच्च रखते हैं। वर्तमान में जीवन-शैली तेज गति से लगातार बदलती रहती है और इसलिए तनाव भी। लोग अपने व्यक्तित्व और रहन-सहन के आधार पर तनाव पर अलग-अलग तरह से प्रतिक्रिया करते हैं। तनाव से कुछ लोगों में दूसरों की तुलना में शारीरिक नुकसान अधिक होता हैं। ऐसे भी उदाहरण हैं जहाँ तनावपूर्ण स्थिति का सामना करते समय कुछ लोग अधिक खाते हैं और कुछ कम खाते हैं। कोई भी तनाव को माप नहीं सकता है और न ही यह मापा जा सकता है कि यह रक्त शर्करा को किस अनुपात में बढ़ाता है। लेकिन यह प्रमाणित हैं कि जो लोग तनावपूर्ण जीवन जीते हैं, उन्हें मधुमेह और हृदय रोग होने का खतरा अधिक होता है।
  • बीमारी या संक्रमण: ये रक्त शर्करा के स्तर में जबरदस्त बदलाव ला सकते हैं। चूंकि बीमारी के दौरान शरीर तनाव में होता है, इसलिए कुछ हार्मोन उत्पन्न होते हैं जो इंसुलिन की क्रिया के प्रतिकूल होते हैं। यह रक्त शर्करा के स्तर को बढ़ा सकते है। कुछ व्यक्तियों द्वारा बीमारी के दौरान बिना डॉक्टर की सलाह से केमिस्ट से दवाएं भी ली जाती हैं। इनमें से कुछ दवाएं विशेष रूप से शराब या शर्करा युक्त होती हैं जो रक्त शर्करा के स्तर को बढ़ा सकती हैं।

हम बहुत अधिक खाते हैं, बहुत अधिक पीते हैं, बहुत अधिक धूम्रपान करते हैं, बहुत तेज गाड़ी चलाते हैं और बहुत कम चलते हैं।
- मार्गरेट सी. हेगार्टी, 1976


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