भारत में केंद्र सरकार और राज्यों के बीच विधायी जिम्मेदारियों का एक संवैधानिक विभाजन है। केंद्र सरकार और राज्य सरकारें सार्वजनिक स्वास्थ्य के मामलों पर कानून बनाने के लिए संवैधानिक रूप से सशक्त हैं।
महामारी रोग अधिनियम की प्रस्तावना में कहा गया है कि इसका उद्देश्य खतरनाक महामारी रोगों के प्रसार की रोकथाम के लिए बेहतर निदान प्रदान करना है। यह कानून महामारी के फैलने पर, उसे नियंत्रित करने के लिए जरूरी उपायों को लागु किए जाने के लिए राज्य सरकारों और केंद्र सरकार को पूर्ण अधिकार देता हैं। ऐसा होने से रोकने के लिये और ऐसे समय में कानून के सामान्य प्रावधान लागू किये जा सकते हैं।
1.केंद्रीय अधिनियम
जब केंद्र सरकार सुनिश्चित कर लेती हैं कि भारत या उसके किसी भी हिस्से में किसी खतरनाक महामारी की बीमारी का प्रकोप हो सकता हैं, तो यह अधिनियम विशेष उपाय करने की शक्ति और खतरनाक महामारी रोग के रूप में नियमों को निर्धारित करने के लिए आज्ञा देता हैं। इस तरह के अस्थायी बनायें नियमों का पालन किया जाना चाहिए।
केंद्र सरकार की शक्तियां - विशेष रूप से और पूर्वगामी प्रावधानों की व्यापकता के बिना पर, सरकार उपाय और नियमों को निर्धारित कर सकती है-
1.निरीक्षण-
a) रेलवे या अन्य यात्रा करने वाले व्यक्तियों का निरीक्षण और किसी भी ऐसी बीमारी से संक्रमित होने का संदेह हो तो निरीक्षण अधिकारी द्वारा संदिग्ध व्यक्तियों का अस्पताल में अलगाव, अस्थायी आवास में रखने का पूरा अधिकार हैं।
b) रोग या उसके प्रसार के कारण, केंद्र सरकार किसी भी जहाज या जहाज के निरीक्षण के लिए नियमों को निर्धारित कर सकती हैं या किसी भी बंदरगाह पर उस क्षेत्र में जा सकती है, जिसमें यह अधिनियम विस्तारित है और ऐसे किसी भी व्यक्ति को जो यात्रा करना चाहता हो या सीमा में प्रवेश करना चाहता हो, उसे रोकने या हिरासत में रखने का अधिकार हैं।
2. अधिनियम के तहत कार्य करने वाले व्यक्तियों को संरक्षण - सब की भलाई के लिए अच्छे इरादे से कानूनी कार्यवाही करने वाले अधिकारीयों पर इस अधिनियम के तहत कोई भी मुकदमा या अन्य कानूनी कार्यवाही किसी भी व्यक्ति द्वारा नहीं की जा सकती।
3. जुर्माना- इस अधिनियम के तहत किए गए किसी भी नियमन या आदेश की अवहेलना करने वाले व्यक्ति को भारतीय दंड संहिता की धारा 188 (1860 का 45) के तहत दंडनीय अपराध माना जाएगा। किस समय और किस तरीके से और किसके द्वारा खर्च वसूला किया जायेगा (मुआवजे सहित यदि कोई हो) निर्धारित करने का पूरा अधिकार हैं।
A) लोक सेवक द्वारा विधिवत आदेश देने की अवज्ञा- जो कोई भी यह जानते हुये कि लोक सेवक द्वारा विधिपूर्वक दिये गये आदेश को लागु करने के उसे पूरे अधिकार होते हैं, यदि उसे एक निश्चित कार्य से दूर रहने या उसके प्रबंधन के तहत या कब्जे की संपत्ति पर कुछ निर्देश दिया जाता हैं और वह निर्देश की अवज्ञा करता हैं और अगर इस तरह की अवज्ञा के फलस्वरूप वह किसी भी प्रकार की दिक़्क़त, बाधा या चोट का कारण बनता हैं, तो उसके लिए कानूनन साधारण कारावास की सजा, जिसकी अवधि एक महीने तक या जुर्माना दो सौ रुपये तक हो सकता हैं या दोनों साथ में भी देने के लिये, लोक सेवक को विधिवत अधिकार दिये गये हैं और यदि इस तरह की अवज्ञा के कारण या प्रवृत्ति या विचारधारा, मानवीय जीवन, स्वास्थ्य या सुरक्षा के लिए खतरे का कारण बनती हैं, या दंगे या दंगे का कारण बनती हैं तो उस व्यक्ति को कारावास से दंडित किया जाएगा, जो की कुछ घंटो से लेकर छह महीने तक का भी हो सकता हैं, या एक हजार रुपये तक का जुर्माना हो सकता है या दोनों भी ।
स्पष्टीकरण - यह आवश्यक नहीं है कि अपराधी ने नुकसान पहुंचाने के इरादे से अवज्ञा की या नुकसान करने की संभावना की सोच से अवज्ञा की हो। बस यह पर्याप्त है कि वह उस आदेश को जानता हैं जिसकी वह अवज्ञा करता हैं और यह कि भी कि उसकी अवज्ञा से किसी नुकसान की संभावना हैं। उदाहरण के तौर पर लोक सेवक द्वारा यह निर्देश दिया गया कि एक धार्मिक जुलूस एक निश्चित सड़क से नहीं गुजरेगा। लेकिन आदेश को लागू करने के बाद भी कोई जानबूझकर आदेश की अवज्ञा करता है, और जिससे दंगे का खतरा होता हैं तो उस व्यक्ति ने इस खंड में परिभाषित अपराध किया हैं।
B) ट्रायल मजिस्ट्रेट (न्यायाधीश) की कार्य स्वाधीनता और विवेक के आधार पर इस तरह के अपराध को बिना देरी किए सुनवाई की सकती हैं। इस अधिनियम के तहत यदि दूसरों की भलाई की नियत से कोई काम किया गया तो कोई भी मुकदमा या कानूनी कार्यवाही किसी भी व्यक्ति या प्राधिकरण के विरुद्ध नहीं हैं।
इन कई मुद्दों पर पुनर्विचार की आवश्यकता हैं, उनमें से कुछ कार्य "महामारी की परिभाषा, क्षेत्रीय सीमाओं, नैतिकता और मानव अधिकारों के सिद्धांतों, अधिकारियों के सशक्तिकरण, और दंड की परिभाषा हैं।" रोग नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय केंद्र एक “सार्वजनिक स्वास्थ्य आपात कानून” विकसित कर रहा हैं।
2. भारतीय दंड संहिता धारा 270:
विद्वेषपूर्णता कार्य, जिससे प्राणघातक संक्रामक बीमारी फैलने की संभावना हो, या कोई भी जानते, बुझते या समझते प्राणघातक संक्रामक बीमारी को फैलाने के प्रयत्न जैसा कुकृत्य करता हैं, उसे दंडित किया जाएगा। उसे या तो कारावास,अधिकतम दो साल तक के लिये, या जुर्माना, या दोनों को भी साथ में दिया जा सकता हैं।
3. एम.सी.आई आचारनीति नियम 7.14:
धैर्य, भद्रता और गोपनीयता चिकित्सक की पहचान हैं। पंजीकृत मेडिकल चिकित्सक किसी भी मरीज के रहस्यों का खुलासा नहीं करेगा, जो कि उसके पेशे के कारण उन्हें ज्ञात हैं, लेकिन निम्न अपवाद हैं-
i) पीठासीन न्यायाधीश के आदेशों के तहत कानून की अदालत में;
ii) ऐसी परिस्थितियों में जहां एक विशिष्ट व्यक्ति या समुदाय के लिए एक गंभीर जोखिम होवे; और
iii) संक्रामक, उल्लेखनीय रोगों के मामले हो तो संबंधित सार्वजनिक स्वास्थ्य अधिकारियों को तुरंत सूचित किया जाना चाहिए।
इस तरह की परिस्थितियों में चिकित्सक को वही आचरण करना चाहिए, जो कि वह स्वयं के परिवार के व्यक्ति के प्रति इन परिस्थितियों में आशा रखता हैं।
4. आगंतुकों का संगरोध:
इबोला के संबंध में, अगस्त 2014 की शुरुआत में, स्वास्थ्य मंत्रालय ने घोषणा की कि "अप्रवास पर अनिवार्य आत्म-रिपोर्टिंग आवश्यक हैं।" विदेश से भारत में प्रवेश करने वाले लोगों के लिए, केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त स्वास्थ्य अधिकारीयों को बंदरगाह के प्रवेश पर तैनात कर के सशक्त अधिकार दिये जाते हैं।
5. गतिविधि की स्वतंत्रता का अधिकार
स्थान-संगरोध (चालीस या चौदह दिनों का पृथक करण), "भारत के पूरे क्षेत्र में आवागमन करने की स्वतंत्रता" के मौलिक अधिकार को प्रभावित करता हैं। हालांकि, यह अधिकार उन उचित प्रतिबंधों के अधीन हैं, जो राज्य सरकारें सार्वजनिक स्वास्थ्य के हित में लगा सकती हैं।
6. निजता का अधिकार
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने पाया है कि निजता का अधिकार, जीवन के अधिकार का एक अनिवार्य घटक हैं, लेकिन यह पूर्णतया परम सिद्धांत भी नहीं है जो अपरिवर्तनशील हैं। लेकिन अपराध, अशांति, विकारों को रोकने के लिए या स्वास्थ्य, नैतिकता, या दूसरों के अधिकारों और स्वतंत्रता की रक्षा करना के लिए प्रतिबंधित किया जा सकता हैं।
राज्य अधिनियम
महामारी रोग अधिनियम राज्यों को व्यापक अधिकार देता हैं। इस तरह की आपात स्थितियों में राज्य, आमतौर पर राज्य स्वास्थ्य अधिनियमों या नगर निगम अधिनियमों के माध्यम से, इन जिलों में उपायुक्तों को कुछ शक्तियां सौंपते हैं।
1. राज्य और नगरपालिका सरकारें
2. नागरिक अधिकार
महामारी रोग अधिनियम की धारा 2 के दायरे में एक खतरनाक बीमारी के प्रकोप से होने वाली आपात स्थिति से निपटने के लिए, जनता या सामूहिक, सार्वजनिक या निजी क्षेत्रों से सहयोग की आवश्यकता होती हैं। यदि वांछित सहयोग नहीं मिलता हैं, तो कानून लगाया जा सकता हैं। इस तरह के आदेशो द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों का पालन करने में विफलता, एक दंडनीय उल्लंघन हैं।
3. न्यायतंत्र
भारत में न्यायपालिका सरकारी कार्यों और कार्यकारी आदेशों में पारदर्शिता सुनिश्चित करती हैं। कोई कार्यकारी आदेशों और विनियमों की न्यायिक समीक्षा कर सकता हैं। भारत की संसद ने सरकारी कार्यों में पारदर्शिता की आवश्यकता के साथ सूचना की स्वतंत्रता अधिनियम भी बनाया हैं।
अंतर्राष्ट्रीय विनियम
Public Health Emergency of International Concern(PHEIC):
सार्वजनिक स्वास्थ जो अंतर्राष्ट्रीय आपातिक स्थिति चिंता का मुद्दा हो तो इस परिस्थिति में ड़बल्यु.एच.ओ (WHO) को रिपोर्टिंग करना जरूरी हैं।