आज हम रोज यह समाचार सुनते या पढ़ते हैं कि कोरोना वायरस के नये प्रतिरूप विकसित हो कर दुनिया को संक्रमित कर रहे हैं, जो कि सार्स-कोवि-2 (SARS-CoV2) से भी अधिक खतरनाक हैं। तो सबसे पहले चलिये हम समझते हैं कि ये सूक्ष्मजीवी और उत्परिवर्तनकरण क्या हैं?
सूक्ष्मजीवी एक बहुत ही छोटी जीवित प्रजाति हैं जो हमारे चारों ओर पाई जाती हैं और जिन्हें हम नग्न आंखों से नही देख सकते हैं। वे पानी, मिट्टी और हवा में रहते हैं। कुछ रोगाणु हमें बीमार बनाते हैं और कुछ हमारे स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण हैं। इनमें आम प्रकार के बैक्टीरिया, वायरस और कवक( फ़ंगस) हैं।
सूक्ष्मजीवी और मानव का संबंध अटूट हैं। सूक्ष्मजीवी हमारे संपर्क में निम्न तरह से आते हैं-
प्रतिरक्षा विज्ञान के अनुसार प्रतिजन या एंटीजन वो बाहरी पदार्थ है जो कि हमारे शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को क्रियाशील बना कर उनसे एंटीबॉडी पैदा करके, रोगों से लड़ने की क्षमता उत्पन्न करते हैं। ये एंटीबॉडी बीमारियों से लड़ने में सहायक होती है। एंटीजन का शरीर में पाया जाना इस बात का संकेत है कि शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को एक बाहरी हमले से लड़ने के लिए एंटीबॉडी बनाने के लिये तैयार हो जाना चाहिये। एंटीजन वातावरण में मौजूद कोई भी बाहरी तत्व हो सकता है, जैसे कि वायरस, बैक्टीरिया, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट आदि। जिनका आणविक भार कम-से-कम 6000 डाल्टन (9.963234e-21gram) होना चाहिए।
सभी पदार्थो में सूक्ष्म निश्चित कण होते हैं जिन्हें परमाणु कहा जाता है। ये पदार्थ-निर्माण के अविभाज्य स्तंभ हैं और इन्हें नष्ट नहीं किया जा सकता है। किसी विशेष तत्व के सभी परमाणु समान गुण और वजन को साझा करते हैं। विभिन्न तत्वों के परमाणुओं में विभिन्न द्रव्यमान होते हैं, तथा यौगिक (कम्पाउंड) पदार्थ-निर्माण के समय विभिन्न तत्वों के परमाणु सुनिश्चित पूर्ण-संख्यिक अनुपात में संयोजित होते हैं।
डाल्टन द्रव्यमान (mass)की एक बहुत छोटी इकाई है जो हाइड्रोजन परमाणु के द्रव्यमान के समकक्ष है। एकीकृत परमाणु द्रव्यमान इकाई अर्थात् कार्बन -12 परमाणु के द्रव्यमान का एक बटा बारहवां हिस्सा, लगभग 1.660 538 86 × 10⁻²⁷ किलोग्राम के बराबर है।
जब बाहरी रोगाणुओं के द्वारा हमारे शरीर के ऊपर संक्रमण/ हमला होता है, तब हमारा शरीर आक्रमणकारी रोगाणुओं से लड़ने के लिये जो तैयारी करता हैं उसे हमारा प्राकृतिक प्रतिरक्षा तंत्र कहा जाता है।
शरीर की सतह- यानि त्वचा, पाचन तंत्र, और नाक की आंतरिक परत अनेक सूक्ष्मजीवियों के एक समुदाय से ढँकी हुई होती है । वे इन संक्रमित रोगाणुओं के लिये एक भौतिक अवरोध उत्पन्न कर संक्रमण में बाधा डालते हैं। जिसका अर्थ है कि रोगाणुओं को पोषक तत्वों के लिए शरीर की सतह से जुड़ने और स्वयं को स्थापित करने के लिए इनसे प्रतिस्पर्धा करनी पड़ती है।
श्वसन प्रणाली - नाक के माध्यम से वायुप्रवाह मार्ग से फेफड़ों तक जाता हैं। नाक मार्ग की दीवारों पर अनेक कोशिकाएँ होती हैं जो श्लेम या बलगम (म्युकस) नामक चिपचिपा द्रव उत्पन्न कर एक झिल्ली सी बनाती हैं, जो कि रोगाणुओं और धूल पर आक्रमण करते हैं। नाक मार्ग में जो सिलिया नामक असंख्य छोटे बाल होते हैं वे एक लहर जैसी गति से रोगाणुओं और धूल के कणों को गले तक ले कर जाते है, जहाँ वे खाँस कर, छींक कर या फिर निगल जाने पर मल के साथ शरीर से बाहर निकल जाते हैं।
हमारा शरीर कई रोगाणुरोधी पदार्थों को बनाता रहता है जो रोगाणुओं को मार देते हैं या बढ़ने से रोकते हैं। उदाहरण के लिए आँसू और लार में मौजूद एंजाइम, बैक्टीरिया को विभाजित कर निष्क्रिय कर देते हैं। औसतन मानव आंत में जो अच्छे बैक्टीरिया होते है उनका वजन लगभग एक किलो होता है। हमारे पेट में अम्ल/ एसिड पैदा होता है जो भोजन और पेय द्वारा में शरीर में प्रवेश करने वाले कई रोगाणुओं को नष्ट कर देता है। ये रोगाणु मूत्राशय और मूत्रमार्ग से मूत्र के रूप में बाहर निकल जाते है।
जब रक्षा की पहली पंक्ति विफल हो जाती है, तो रक्षा प्रणाली दूसरी पंक्ति फागोसाइट्स को सक्रिय करती है। ये शरीर के अंदर एक प्रकार की कोशिका हैं जो बैक्टीरिया और अन्य छोटी कोशिकाओं और कणों को निगलने और अवशोषित करने में सक्षम हैं। इससे पहले कि रोगाणु कोई नुकसान कर सकें, फागोसाइट्स पाचन एंजाइमों से इन पर वार करते हैं जिस से रोगाणु विभाजित हो कर निष्क्रिय हो जाते हैं। इस प्रक्रिया को फैगोसाइटोसिस कहा जाता है।
‘प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया ‘ रक्षा की तीसरी और अंतिम पंक्ति है। आक्रमण करने वाले सूक्ष्म जीव या रोगाणु को ‘एंटीजन’ कहा जाता है। इसे प्रतिरक्षा प्रणाली द्वारा एक ऐसे खतरे के रूप में देखा जाता है, जो प्रतिरक्षात्मक प्रतिक्रिया को उत्तेजित करने में सक्षम होते है। एंटीजन मूलतः प्रोटीन होते हैं जो रोगाणुओं की सतह पर पाए जाते हैं। भिन्न रोगों के एंटीजन भी भिन्न होते हैं और उस रोगाणु की पहचान होते हैं। जब एंटीजन शरीर में प्रवेश करता है, तो प्रतिरक्षा प्रणाली इसके खिलाफ एंटीबॉडी बनाना शुरू कर देती है।
जिस तरह से आक्रमणकारी से बचाव के लिए सेना लड़ती हैं, ठीक उसी तरह आक्रमणकारी (प्रतिजन) से बचाव के लिए एंटीबॉडी लड़ाई करती है। लिम्फोसाइट (एक प्रकार की श्वेत रक्त कोशिका एंटीजन को विदेशी के रूप में पहचानती है और उस एंटीजन के लिए विशिष्ट एंटीबॉडी का उत्पादन करती है। एंटीजन के विशिष्ट आकार के अनुसार प्रत्येक एंटीबॉडी एक विशेष बंधनकारी आकार बना कर एंटीजन को उसमे कैद कर लेती हैं और एंटीबॉडी एंटीजन (रोगजनक) को नष्ट करते पचा जाती है।
ये श्वेत रक्त कोशिकाएं ‘एंटीटॉक्सिन’ नामक रसायन भी उत्पन्न करती हैं, जो बैक्टीरिया द्वारा उत्पन्न विषाक्त पदार्थों (जहर) को नष्ट कर सकती हैं । जैसे कि टेटनस, डिप्थीरिया और स्कार्लेट बुखार के बैक्टीरिया विषाक्त पदार्थों का स्राव शरीर में कर के बीमार कर देते हैं।
हमारा शरीर ऐसी मेमोरी या स्मृति कोशिकाओं का निर्माण करता है जो उस एंटीजन के लिए विशिष्ट होती हैं। वे रोगाणु जब दोबारा संक्रमण करते हैं तो स्मृति कोशिकाएं रोगाणुओं को याद कर के तेजी से सटीक एंटीबॉडी बनाती हैं। तब एंटीबॉडी रोग के लक्षणों को रोक कर रोगाणुओं को जल्दी से नष्ट कर देता है।
'लिम्फोसाइट' में मूल रूप से दो प्रकार की श्वेत रक्त कोशिकाएं हैं: एक हैं टी कोशिकाएं जो प्रतिरक्षा प्रणाली का एक अनिवार्य हिस्सा हैं। वे शरीर को संक्रमण से बचाने और रोगाणुओ से लड़ने में मदद करती हैं। इन्हें टी लिम्फोसाइट और थायमोसाइट भी कहा जाता है। दूसरी हैं बी कोशिकाएँ - जो शरीर में एंटीजन (विदेशी पदार्थों) के प्रति विशिष्ट प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया निर्धारित करती हैं।
गत तीन-चार महीनों से, दुनिया में सार्स-कोवि-2 वायरस के अनेक उत्परिवर्तीय (म्यूटेंट) प्रकारों के होने की जानकारी मिली है, जिनका रूप पहले वाले वायरस की तुलना में अधिक संक्रामक है। लॉकडाउन, मास्क, शारीरिक दूरी और टीके एक ओर वायरस के प्रसार को धीमा कर रहे थे, परंतु नये वायरस भी इन दबावों में विकसित हो रहे थे। ये प्रतिजनी विचलन के उत्परिवर्तीयता का प्रतिनिधित्व करते हैं। इनमें से कम से कम एक तो दक्षिण अफ्रीका से है, जो 'टीका-पलायन’ कर के संक्रमण को रोकने के लिए दी जा रही टीकों की प्रभावशीलता को काफी हद तक कम करने के सफल हो रहा है।
कोरोनो वायरस की सतह पर कीलें होती हैं, जो मुकुट की तरह दिखाई देती है और इन कीलों में प्रोटीन में होता है। वायरस कीलों का उपयोग मानव कोशिकाओं की सतह पर जो ACE2 रिसेप्टर्स (अभिग्रहण) करने वाली कोशिकाओं हैं उन से जुड़ने के लिए करता है और फिर जबरन कोशिकाओं को खोल कर अंदर प्रवेश करता हैं । म्यूटेशन का मुख्य उद्देश्य जुड़ना और प्रवेश को आसान बनाना है। जब वायरस अपनी प्रतियां बनाने के लिए मेजबान की आनुवंशिक सामग्री का उपयोग करता है, तब गलती से भी उत्परिवर्ती (म्यूटेंट) उत्पन्न हो सकते हैं। RNA (आरएनए) वायरस में इन गलतियों को सही करने की कोई कार्यप्रणाली नहीं है, जिसके फलस्वरूप वे वायरस म्यूटेंट बनाते रहते हैं, जिनमें से कुछ प्रजातियाँ वायरस के प्रसार और संरक्षण के लिए उपयोगी होती हैं ।अन्य प्रजातियाँ जिनका वायरस के विकास में कोई लाभ नहीं होता हैं, वे जल्द ही नष्ट हो जाती हैं ।
सार्स-कोवि-2 (SARS-CoV2) वायरस के कई उत्परिवर्तित प्रजातियाँ पिछले 14 महीनों में उभरी हैं। उनमें से अधिकांश, लोगों का ध्यान आकर्षित नहीं कर पायी , क्योंकि इस महामारी में उनकी अहमियत नहीं दिखाई देती थी । लेकिन कई ऐसे भी थे जो अधिक संक्रामक थे और लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने में सफल रहे और जो दुस्साहस से 'टीका-पलायन’ करके लोगों में भय फैलाने में कामयाब हो गये। वैज्ञानिको ने उत्परिवर्ती को देश या प्रांत के साथ जोड़ने का विरोध किया। लेकिन ये नाम जटिल हैं और इनमें वर्ण और अंकों के साथ उत्परिवर्ती का जन्मस्थान, मूल अमीनो एसिड और प्रतिस्थापित अमीनो एसिड का भी संकेत है। इन संकेतों का मीडिया में रिपोर्ट करना आसान नहीं है, इसलिए लोग उत्परिवर्ती को उनके जन्म स्थान के नाम से सम्बोधित करते हैं, ताकी आम लोग इसे आसानी से समझ सकें ।
सुर्खियों में आने वाली पहली प्रजाति B1.1.7 (यूके-केंट) थी, जिसकी संक्रामकता दर 70% अधिक होने की सूचना मिली थी। लेकिन बाद में अधिक संक्रामकता के कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं मिल पाये। अगला B.1.351 (दक्षिण अफ्रीका) था, जो न केवल अधिक संक्रामक था बल्कि टीके से होने वाली प्रतिरक्षा से भी सुरक्षित था। ब्राजील का P.1 अपना जन्म स्थान, दक्षिण अफ्रीकी प्रजाती E.484.K के जन्मस्थान के साथ साझा करता है। यूएसए की तुलना में दक्षिण अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में पाई गई प्रजातियों पर एस्ट्राजेनेका और जॉनसन ऐंड जॉनसन की वैक्सीन का प्रभाव कम दिखाई देता है। नोवावैक्स के परीक्षण के दौरान दक्षिण अफ्रीकी प्रजातियों के खिलाफ वह केवल 49% प्रभावी मिली हैं, जबकि इसके विपरीत ब्रिटेन में 89% प्रभावी मिली हैं ।
वैक्सीन या टीकों के कई प्रकार होते हैं। प्रत्येक प्रकार के टीके की रचना हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को कुछ खास प्रकार के कीटाणुओं ( जिनसे गंभीर बीमारियाँ होती हैं ) से लड़ना सिखाने के लिए की गयी है ।
इन बिंदुओं के आधार पर, वैज्ञानिक यह तय करते हैं कि वे किस प्रकार की वैक्सीन बनाएंगे। कई प्रकार की वैक्सीन हैं, लेकिन मुख्य निम्न तरह की हैं:
वैक्सीन की अनेको प्रजातियाँ हैं उनमें से एमआरएनए (mRNA) वैक्सीन को थोड़ा तोड-मरोड़ कर इन नये उत्परिवर्ती से प्रतिरक्षा के उपायों को छह-आठ हफ्तों में खोजा जा सकता हैं। जो वैक्सीन, केवल कीलों के प्रोटीन प्रतिजन तक सीमित नहीं हैं बल्कि वायरस के विरूद्ध भी प्रतिरक्षा प्रदान करती हैं, वह प्रोटीन परिवर्तनों पर भरोसा करने वाले म्यूटेंट के खिलाफ अच्छी तरह से प्रतिरक्षा प्रदान कर सकती हैं। निष्क्रिय वायरस के टीके इस समूह के हैं।
जब हम टीकों के प्रतिजनों के अनुकूलित होने का इंतजार कर रहे हैं, जो इन प्रजातियों के खिलाफ एक मजबूत रक्षा कवच बना सके , तब तक हमें यह पहचानना और मान लेना होगा कि केवल प्राथमिक सुरक्षा से ही संक्रमण को रोका जा सकता है। अतः नाक और मुँह पर मास्क पहनना, बार-बार हाथ धोना, शारीरिक दूरी रखना और हवादार वातावरण कोरोना वायरस को शरीर में प्रवेश करने से रोकेंगे।
अपने विवेक और बुद्धि के बल पर ही हम इन रोगाणुओं पर काबू पा सकते हैं चाहे ये किसी भी छद्म वेष में हम पर हमला करते रहें। जैसा कि रोगाणुओं पर जोशुआ लेडरबर्ग ने वर्ष 2000 में विज्ञान पत्रिका में कहा था कि,' उनके (सूक्ष्मजीवी) जीन के खिलाफ हमारी बुद्धि और विवेक है’। उन्होंने रोगाणुओं को हमेशा के लिये खत्म करने वाले प्रयोगों को न करने के लिये भी आगाह किया था और कहा कि हम यह याद रखें कि अधिकांश सूक्ष्मजीवी हमारे साथ एक पर्यावरणीय संतुलन में हैं और हमारे सह अस्तित्व के लिए काम करते हैं।