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बच्चों में टाइप-1 मधुमेह

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बच्चों में टाइप 1 मधुमेह क्या है?

टाइप-1 मधुमेह (T1D) जिसे किशोर मधुमेह भी कहा जाता है, यह बच्चों में पाया जाने वाला सबसे आम एक अंतःस्रावी और चयापचय संबंधी विकार है। कई अध्ययनों से यह भी पता चलता है कि कई देशों में पहचाने गए नये मामलों की दर छोटे बच्चों में सबसे अधिक है। टाइप-1 मधुमेह में, अग्न्याशय इंसुलिन का उत्पादन करने की क्षमता खो देता है।

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इंसुलिन आमतौर पर अग्न्याशय में मौजूद लैंगरहैंस के आइलेट की बीटा कोशिकाओं द्वारा निर्मित होता है। भोजन के बाद, रक्त शर्करा का स्तर बढ़ जाता है। अग्न्याशय तब इंसुलिन का स्राव करता है जो कोशिकाओं को विभिन्न चयापचय प्रक्रियाओं के लिए ग्लूकोज को अवशोषित करने में मदद करता है। टाइप-1 मधुमेह में, शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली अपनी बीटा कोशिकाओं पर हमला कर उसे नष्ट कर देती है, जिससे इंसुलिन की कमी हो जाती है और अंततः शरीर के ग्लूकोज के स्तर में गड़बड़ी हो जाती है।

बच्चों में टाइप 1 मधुमेह के कारण और जोखिम कारक क्या हैं?

किशोर मधुमेह का सही कारण अज्ञात है लेकिन शोधकर्ताओं ने अब तक निम्न दो मुख्य कारको की पहचान की है :

  • आनुवंशिकी - बच्चों में टाइप 1 मधुमेह को प्रतिरक्षा-मध्यस्थ रोग (क्रॉनिक इम्युन मेडिऐटेड) के रूप में माना जाता है। यह इंसुलिन-स्रावित अग्नाशय बी कोशिकाओं (β cells) के स्वत: प्रतिरक्षी विनाश के परिणामस्वरूप होता है। वैज्ञानिकों का सुझाव है कि HLA जीनस से इस बीमारी के विषय में आनुवंशिक संवेदनशीलता के लगभग आधे हिस्से को समझा जा सकता हैं।
  • पर्यावरण ट्रिगर- अध्ययनों से पता चलता है कि पर्यावरणीय तनाव (विशेष रूप से बचपन का मोटापा ) इंसुलिन की मांग को बढ़ाता है, जिससे आइलेट कोशिकाये अतिभारित हो जाते है और बी-सेल की क्षति को तेज करते हैं ।
    • वायरल संक्रमण भी T1D के हेतुविज्ञान (एटियोलॉजी) की ओर इशारा करता है। एंटरोवायरस, रोटावायरस या अन्य वायरस से कोशिकाविष जीवाणु (साइटोटॉक्सिक) का प्रभाव हो सकता है या वे एक स्व-प्रतिरक्षित (ऑटोइम्यून) प्रक्रिया को सक्रिय करते है जो धीरे-धीरे बी-सेल को विनाश की ओर ले जाती है।
    • आहार संबंधी कारक- बच्चों को प्रारंभिक दिनों में गाय का दूध देने से, गाय के दूध का प्रोटीन बाद में बी-सेल की प्रतिरक्षा प्रणाली (ऑटोइम्यूनिटी) और नैदानिक बीमारी की जोखिम के रूप में पाया गया है। अमेरिकी रिपोर्ट यह भी बताती है कि बच्चों का अनाज से शुरुआती या देर से संपर्क, दोनों ही बी-सेल की प्रतिरक्षा प्रणाली (ऑटोइम्यूनिटी) की बढ़ती जोखिम से जुड़े हुये हैं। मधुमेह की भविष्यवाणी और रोकथाम परियोजना (डीआईपीपी) के अध्ययन के अनुसार, फलों और बेरी के साथ-साथ जड़ों वाली वनस्पतियों की बच्चों में जल्दी शुरूआत भी बी-सेल की प्रतिरक्षा प्रणाली (ऑटोइम्यूनिटी) के लिए जोखिम हो सकती है।

टाइप 1 मधुमेह प्राप्त होने की जोखिम निम्न हैं -

  • बच्चा होने के कारण ( 4-7 साल या 10-14 साल की उम्र)
  • माता-पिता या भाई-बहन को मधुमेह होना
  • कुछ विशेष जीनस का होना
  • भूमध्य रेखा से बहुत दूर रहना (फिनलैंड और सार्डिनिया जैसे स्थानों में)।

बच्चों में टाइप 1 मधुमेह के लक्षण क्या हैं?

टाइप 1 मधुमेह धीरे-धीरे विकसित होता है, हालांकि इसके लक्षण अचानक दिखाई देते हैं। संकेत और लक्षण निम्न हैं:

  • अत्यधिक कमजोरी और थकान
  • भूख में वृद्धि
  • अत्यधिक प्यास—निर्जलीकरण
  • अत्यधिक पेशाब
  • पेट में दर्द
  • धुंधली दृष्टि
  • घावों का ठीक नहीं होना
  • वजन घटना - अधिक खाने के बावजूद भी
  • शरीर का तापमान 97º F से नीचे कम होना।

आप बच्चों में टाइप 1 मधुमेह का निदान कैसे करते हैं?

बच्चों में टाइप 1 मधुमेह की स्क्रीनिंग के लिए मानदंड में शामिल हैं:

अधिक वजन - बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) > उम्र और लिंग के हिसाब से 85 प्रतिशतक (पर्सेन्टाइल); या फिर उम्र, लिंग और ऊंचाई के हिसाब से वजन> 85 प्रतिशतक; या वजन> 120% आदर्श ऊंचाई का हैं।

निम्न जोखिम कारकों में से इन दोनों के अलावा:

  • पहली या दूसरी पीढ़ी के रिश्तेदारों में टाइप 2 मधुमेह का पारिवारिक इतिहास
  • इंसुलिन प्रतिरोध के लक्षण या इंसुलिन प्रतिरोध से जुड़ी स्थितियां, जैसे त्वचा का हाइपरपिग्मेंटेशन (एकैंथोसिस नाइग्रिकन्स), उच्च रक्तचाप, ट्राइग्लिसराइड का बढ़ा हुआ स्तर, पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम
  • प्रारंभिक यौवन - स्क्रीनिंग की शुरुआत के लिए मान्य उम्र, 10 वर्ष या यौवन की शुरुआत है।

प्राथमिक परीक्षण बच्चों में टाइप 1 मधुमेह का निदान करने के लिए प्रयोग किया जाता है:

  • रैंडम ब्लड शुगर टेस्ट - रक्त का नमूना अनियत समय पर लिया जाता है। रक्त शर्करा का मान मिलीग्राम प्रति डेसीलीटर (मिलीग्राम/डीएल) या मिलीमोल प्रति लीटर (mmol/L) में व्यक्त किया जाता है। यदि अनियत रक्त शर्करा का स्तर 200 mg/dL (11.1 mmol/L) या इससे अधिक हो तो मधुमेह है, यह माना जाता हैं।
  • ग्लाइकेटेड हीमोग्लोबिन (A1C या HbA1c) परीक्षण - यह रक्त परीक्षण पिछले 2-3 महीनों में रक्त शर्करा के औसत स्तर को दर्शाता है। इस परीक्षण में हीमोग्लोबिन से जुड़े रक्त शर्करा का प्रतिशत मापा जाता है। HbA1c अंतिम माप से पहले पिछले तीन महीनों में औसत रक्त शर्करा के स्तर के लिए यह एक चिन्ह या एक मार्कर के रूप में कार्य करता है, क्योंकि यह लाल रक्त कोशिकाओं का जीवनकाल है। 6.5 प्रतिशत या अधिक का A1C स्तर मधुमेह को इंगित करता है।
  • फास्टिंग ब्लड शुगर टेस्ट - रात भर के उपवास के बाद रक्त का नमूना लिया जाता है। उपवास रक्त शर्करा का स्तर 100 mg/dL (5.6 mmol/L) से कम को सामान्य और यदि यह 126 mg/dL (7.0 mmol/L)हैं या दो अलग-अलग परीक्षणों में इससे अधिक है, तो बच्चे मे मधुमेह है यह माना जाता हैं ।

बच्चों में टाइप 1 मधुमेह की जटिलताएं क्या हैं?

टाइप 1 मधुमेह अल्पकालिक और दीर्घकालिक दोनों जटिलताओं से जुड़ा है। दीर्घकालिक जटिलताओं में मुख्य रूप से शामिल हैं:

टाइप 1 मधुमेह को रोका नहीं जा सकता। प्रतिरक्षा दमनकारी दवा, साइक्लोस्पोरिन अव्यक्त स्वप्रतिरक्षी अवस्था में बीटा कोशिकाओं के विनाश को रोक सकती है। हालांकि, साइक्लोस्पोरिन के सेवन से बहुत सारे दुष्प्रभाव होते हैं।

नवीनतम शोध से पता चलता है कि आर्टेमिसिनिन नामक एक मलेरिया रोधी दवा अग्न्याशय में अल्फा कोशिकाओं का उत्पादन करने वाले ग्लूकागन को इंसुलिन बनाने वाली बीटा कोशिकाओं में बदल सकती है। भविष्य में मधुमेह की उपचारिक औषधी के रूप में इसका उपयोग हो सकता है। .

बच्चों में टाइप 1 मधुमेह के लिए उपचार और प्रबंधन के क्या तरीके हैं?

बच्चों में टाइप 1 मधुमेह के लिए प्रभावी प्रबंधन और उपचार देखभाल के लक्ष्यों को निश्चित करके शुरू होता है। इसमें रक्त शर्करा की निगरानी, इंसुलिन थेरेपी, स्वस्थ भोजन और नियमित व्यायाम शामिल हैं। वर्तमान में, मधुमेह का कोई इलाज नहीं है, इसलिए टाइप 1 मधुमेह वाले बच्चों को जीवन भर उपचार की आवश्यकता होती है। उचित उपचार योजना का पालन करने से बच्चों को स्वस्थ रहने में मदद मिल सकती है।

1. रक्त शर्करा के स्तर की निगरानी

टाइप 1 मधुमेह के उपचार में नियमित रूप से रक्त शर्करा के स्तर की जाँच करना और परिणामों पर प्रतिक्रिया देना शामिल है। यह मधुमेह वाले बच्चों को सामान्य रूप से बढ़ने और विकसित करने में मदद करता है, और दीर्घकालिक मधुमेह जटिलताओं के जोखिम को भी कम कर सकता है। सामान्य तौर पर, टाइप 1 मधुमेह वाले बच्चों को उनके रक्त शर्करा के स्तर के लिए रक्त ग्लूकोज मीटर के साथ दिन में कम से कम चार बार परीक्षण किया जाना चाहिए। एक अन्य रक्त शर्करा परीक्षण, ग्लाइकोसिलेटेड हीमोग्लोबिन (हीमोग्लोबिन A1c या HbA1c) परीक्षण भी किया जाना चाहिए।

2. इंसुलिन थेरेपी

आपके बच्चे की उम्र और जरूरत पर निर्भर करता है, डॉक्टर दिन भर और रात भर उपयोग करने के लिए इंसुलिन के प्रकार का मिश्रण दे सकते हैं। उपलब्ध इंसुलिन के निम्न प्रकार हैं:

  • तेज गति से काम करने वाली -इंसुलिन (रैपिड-एक्टिंग इंसुलिन)- यह पांच से15 मिनट में काम करना शुरू कर देती है और इंजेक्शन के लगभग एक घंटे बाद यह अपने चरम पर होती है।
  • धीमी गति से काम करने वाली -इंसुलिन (शॉर्ट-एक्टिंग इंसुलिन) - यह इंजेक्शन के 30 मिनट बाद काम करना शुरू करती है और आम तौर पर दो से चार घंटे में चरम पर पहुंच जाती है।
  • लंबे समय तक काम करने वाली इंसुलिन - इसका लगभग कोई चरम शिखर नहीं होता है और यह 20-26 घंटों तक सक्रिय रहती है।
  • मध्यवर्ती समय तक काम करने वाली इंसुलिन - इसे लेने के 30 मिनट से एक घंटे में काम करना शुरू कर देती है और 4-6 घंटे में यह चरम पर पहुंच जाती है।

इंसुलिन प्रशासन के विकल्प

इंसुलिन प्रशासन के अन्य विकल्प भी हैं। आपके बच्चे के लिए सबसे अच्छा क्या काम करता है, इसके आधार पर बच्चों में इंसुलिन को प्रभावी ढंग से प्रशासित करने के लिए सुझाव दिए गए हैं। पारंपरिक इंसुलिन प्रशासन में सीरिंज से त्वचा के नीचे इंसुलिन की निश्चित मात्रा को दिया जाता हैं। कुछ अन्य निम्न विकल्प भी उपलब्ध हैं:

  • इंसुलिन पेन - इंसुलिन पेन में इंसुलिन के एक कारतूस (कार्ट्रिज) को पेन में लगा कर उपयोग किया जाता है या पहले से भरे हुए इंसुलिन पेन होते हैं जिन्हें इंसुलिन के समाप्त होने के बाद फेंक दिया जाता है। ।
  • इंसुलिन पंप - इंसुलिन पंप त्वचा के नीचे लगी नलिका (कैथिटर) के माध्यम से 24 घंटे इंसुलिन वितरित करके मधुमेह को प्रबंधित करने में मदद करते हैं। इसका उपयोग करने के लिये शिक्षा और प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। ये पंप अधिक लचीलापन प्रदान करते है क्योंकि यह लगातार इंसुलिन वितरित करते है और हर 2-3 दिनों में जगह बदलने पर केवल एक सुई बदलने की आवश्यकता होती है। कम्प्यूटरीकृत इंसुलिन पंप, इंसुलिन पेन की तुलना में ज्यादा खर्चीले होते हैं।

रोगी की इंजेक्शन तकनीक की समीक्षा चिकित्सक या मधुमेह शिक्षक द्वारा की जानी चाहिए। निम्नलिखित चरणों को अपना कर इंजेक्शन के दर्द को कम किया जा सकता है:

  • कमरे के तापमान पर इंसुलिन लेवें। उसी सामान्य क्षेत्र में बार-बार इंसुलिन का इंजेक्शन लगाने से आपको इंसुलिन से सर्वोत्तम परिणाम मिल सकते हैं। खाने से 30 मिनट पहले इंसुलिन लेने से इंसुलिन सबसे अच्छा काम करता है।
  • सुनिश्चित करें कि इंजेक्शन से पहले सिरिंज में कोई हवाई बुलबुले न रहें।
  • यदि इंजेक्शन से पहले सामयिक अल्कोहल या स्पीरिट उपयोग किया जाता है तो उस के पूरी तरह से वाष्पित हो जाने तक प्रतीक्षा करें।
  • इंजेक्शन लगाने के दौरान मांसपेशियों को तनावग्रस्त नहीं बल्कि ढीला रखें।
  • लगाने या निकालने के दौरान सुई की दिशा न बदलें।
  • सुइयों का पुन: उपयोग न करें।

3. स्वस्थ भोजन:

मधुमेह के बच्चे के लिए सबसे अच्छी आहार-योजना वह हैं जिसमें शर्करा युक्त खाद्य पदार्थों से परहेज करना और अधिक हरी सब्जियां, फल और साबुत अनाज शामिल हो।

4. नियमित व्यायाम:

नियमित व्यायाम शरीर में रक्त के प्रवाह को बढ़ाकर इंजेक्शन के स्थान से इंसुलिन के अवशोषण की दर को बढ़ाता है।

स्वास्थ्य युक्तियाँ

आम तौर पर, टाइप 1 मधुमेह वाले बच्चों को निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए:


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