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मधुमेह टाइप 2 का चीनी-मीठे पेय पदार्थों से संबंध

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मीठे पेय पदार्थ बनाम टाइप-2 मधुमेह पर शोध अध्ययन

चीनी या मीठे पेय और टाइप-2 मधुमेह के बीच के संबंध का पता लगाने के लिए कई अध्ययन किए गए हैं। हालांकि अध्ययनों से मिश्रित परिणाम मिले, जहां कुछ को दोनों के बीच एक सकारात्मक संबंध मिला और अन्य इतने निश्चित नहीं थे। लेकिन यह स्पष्ट रूप से सहमत है कि शर्करा युक्त पेय पदार्थों का सेवन चयापचय सिंड्रोम के जोखिम को कम करने के लिए सीमित होना चाहिए।

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हार्वर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ (HSPH) के एक शोधकर्ता वसंती मलिक कहते हैं कि, “लोगों को चाहिए कि वे चीनी या मीठे पेय पदार्थों की मात्रा को सीमित करें और उनकी जगह पानी जैसे स्वस्थ विकल्पों का प्रयोग करें, ताकि मधुमेह के साथ-साथ मोटापा, गाउट, दांतों की सड़न और हृदय रोग के जोखिम को कम किया जा सके।"

दो शोध अध्ययनों का यहां संक्षेप में वर्णन किया गया है।

चीनी या मीठे पेय (एसएसबी) के सेवन और मेटाबोलिक सिंड्रोम और टाइप 2 मधुमेह के जोखिम पर एक मेटा-विश्लेषण- मेडलाइन डेटाबेस से यह पता चला हैं कि एसएसबी अपनी 'उच्च अतिरिक्त चीनी सामग्री, कम तृप्ति क्षमता और तरल कैलोरी के सेवन के बाद किये जाने वाले भोजन में ऊर्जा सेवन के अपूर्ण प्रतिपूरक कमी के कारण वजन बढ़ाते हैं, जिससे सकारात्मक ऊर्जा-संतुलन होता है'। एसएसबीएस (SSBs) का जब बड़ी मात्रा में सेवन किया जाता है, तब यह पाया गया हैं कि रक्त शर्करा और इंसुलिन सांद्रता तेजी और आकस्मिक रूप से बढ़ती है और इस प्रकार वह उच्च ग्लाइसेमिक से युक्त आहार में अपना योगदान देती है। शोधकर्त्ता कहते हैं कि, "उच्च ग्लाइसेमिक से भरे हुये आहार ग्लूकोज असहिष्णुता को प्रेरित करने के लिए जाने जाते हैं और विशेष रूप से अधिक वजन वाले व्यक्तियों में इंसुलिन प्रतिरोध और बढ़ सकता है। वे जैविक चिह्नक (बायोमार्कर) के स्तर को उत्तेजित करते हैं, जैसे सी-रिएक्टिव प्रोटीन, जो टाइप -2 मधुमेह के जोखिम से जुड़े हुए हैं”। उनके अनुसार 'एक उच्च ग्लाइसेमिक युक्त आहार से कोलेस्ट्रॉल, पित्त, पथरी रोग के विकसित होने का खतरा बढ़ जाता है, क्योंकि यह सब इंसुलिन प्रतिरोध, चयापचय सिंड्रोम और टाइप -2 मधुमेह से जुड़े हुये है।'

एसएसबीएस (SSBs) में निहित अंतर्जात यौगिक तत्व, जैसे कि शक्कर भून कर चासनी (कारमेलाइज़ेशन) बनाने की प्रक्रिया के दौरान उत्पादित पदार्थ का अंतिम रूप, उच्च श्रेणी का ग्लाइकेशन होता हैं और ये कोला जैसे विभिन्न पेयों में पाये जाते हैं, जो टाइप 2 मधुमेह और चयापचय सिंड्रोम से संबंधित पैथोफिज़ियोलॉजिकल मार्ग को भी प्रभावित कर सकते हैं।

शोधकर्ताओं ने निष्कर्ष निकाला कि एसएसबी का सेवन मोटापे से संबंधित गंभीर चयापचय संबंधी बीमारियों के जोखिम को कम करने के लिए सीमित होना चाहिए।

इसी तरह, एक अन्य अध्ययन में, शुल्ज़ और उनके सहयोगियों ने पाया कि जिन महिलाओं ने बहुत अधिक चीनी या मीठे शीतल पेय का सेवन करती हैं, उनमें निम्न प्रवृत्ति आम थी:

  • शारीरिक रूप से वे कम सक्रिय थी
  • अधिक धूम्रपान करती थी
  • कुल कैलोरी का मात्रा से भी अधिक सेवन करती थी
  • प्रोटीन, अल्कोहल, मैग्नीशियम और अनाज फाइबर का कम सेवन करती थी।

उनके निष्कर्ष के अनुसार, 'इन महिलाओं के आहार का तरीका (पैटर्न) और जीवनशैली की आदतें, मोटापे, टाइप 2 मधुमेह और हृदय रोग सहित कई बीमारियों के जोखिम को बढ़ाती हैं। '

हालांकि यह अध्ययन महिलाओं पर किया गया था, लेकिन निष्कर्ष पुरुषों और बच्चों पर भी लागू होते हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) की एक संयुक्त रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से चीनी या मीठे पेय पदार्थों के सेवन को प्रतिबंधित करने की सिफारिश की गई है। उनके अनुसार एक स्वस्थ मीठे पेय आहारों में कुल चीनी के सेवन के उपयोग का 10 प्रतिशत से अधिक प्रयोग नहीं होना चाहिये।


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