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बाधक निंद्रा अश्वसन

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वायुमार्ग में रुकावट के परिणाम

रक्त परिसंचरण में ऑक्सीजन के स्तर में कमी हृदय और मस्तिष्क दोनों के लिए खतरनाक हो सकती है। इन दोनों अंगों को अन्य अंगों की तुलना में अपने सामान्य कार्य के लिए बहुत अधिक ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। रक्त परिसंचरण में ऑक्सीजन में रुकावट, किसी व्यक्ति के गला घुटने की स्थिति में उसके शरीर को आवश्यक निरंतर ऑक्सीजन की आपूर्ति को बार-बार वंचित करने के समान ही है।

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ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया में बार-बार होने वाली इस रुकावट के कारण स्वायत्त तनाव होता है।

शरीर के स्वायत्त तंत्रिका तंत्र में दो प्रणालियां होती हैं जिन्हें अनुकम्पी तन्त्रिका प्रणाली (सिम्पेथेटिक सिस्टम) और परानुक्म्पी तन्त्रिका प्रणाली(पैरासिम्पेथेटिक सिस्टम) कहा जाता है। यह ऐसी प्रणालियाँ हैं जिनके बारे में हम सामान्य रूप से नहीं जानते हैं। ये शरीर के प्रमुख कार्यों और गतिविधियों को नियंत्रित करती हैं, जैसे कि हृदय, पेशी, अंतःस्रावी ग्रंथियों, पाचन और रक्त वाहिकाओं की दीवारों की मांसपेशीयाँ इत्यादि।

ऑक्सीजन का अभाव स्वायत्त प्रणाली और उसके कामकाज को तहस नहस कर देता है। सबसे पहले पीड़ित होने वाले अंगों में हृदय और मस्तिष्क शामिल हैं।

ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया (OSA) के रोगियों के हृदय पर निम्न परिणाम देखे जाते हैं-

हृदय की लय में अनियमितता जिसे कार्डिएक डिसरिथमियास कहते हैं, देखा जा सकता है।

चक्रीय गतिविधि में बदलाव से रक्तचाप में परिवर्तन होता हैं, इससे यह फेफड़ों की वाहिकाओं (फुफ्फुसीय उच्च रक्तचाप कहा जाता है) में और शरीर के बाकी हिस्सों के सामान्य रक्तचाप को भी बढ़ाता है (जिसे प्रणालीगत उच्च रक्तचाप कहा जाता है)।

टिप्पणी

स्वायत्त तंत्रिका प्रणाली (ऑटोनोमिक नर्वस सिस्टम)
स्वायत्त तंत्रिका प्रणाली को मस्तिष्क तंत्र के माध्यम से रीढ़ की हड्डी और अंगों में एकीकृत प्रतिबिंबों द्वारा नियंत्रित किया जाता है। स्वायत्त तंत्रिका प्रणाली में प्राय ऐसी प्रतिक्रियाएँ होती हैं, जिन पर मानव मस्तिष्क तथा मेरुरज्जु का नियन्त्रण नहीं होता है । ये क्रियाएँ स्वयं होती हैं, जो बड़े पैमाने पर अनजाने में कार्य करती है और हृदय गति, पाचन, श्वसन दर, आँख की पुतलियों की प्रतिक्रिया, पेशाब, खांसी, छींकना, निगलना, उल्टी करना और यौन उत्तेजना जैसे शारीरिक कार्यों को नियंत्रित करती है।

अनुकम्पी तन्त्रिका प्रणाली (सिम्पेथेटिक सिस्टम) अनुकम्पी तन्त्रिका प्रणाली, एक स्वचालित तंत्रिका तंत्र है, जो स्वायत्त तंत्रिका तंत्र का हिस्सा है। यह तंत्रिकाओं का एक जाल है जो शरीर को ‘लड़ाई-या-उड़ान’ प्रतिक्रिया को सक्रिय करने में मदद करता है। यह कई गतिविधियाँ करता हैं, जिन्हें नियंत्रित करने के बारे में सोचने की ज़रूरत नहीं होती है।
यह खतरनाक या तनावपूर्ण स्थितियों में अपनी प्रतिक्रिया के लिए सबसे अच्छी तरह से जाना जाता है। इन स्थितियों में, यह तंत्र हृदय गति को तेज कर के शरीर के उन क्षेत्रों में अधिक रक्त वितरित करता है, जिन्हें अधिक ऑक्सीजन या अन्य प्रतिक्रियाओं की आवश्यकता होती है ताकि खतरे से बाहर निकला जा सकें। ये उन स्थितियों में मदद करते हैं जहां तेज़ी से सोचने या प्रतिक्रिया की आवश्यकता होती है। ये सक्रिय हो कर शरीर में किसी भी तनाव या चोट लगने पर मरम्मत की प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं। इसमें अन्य कार्यों के अलावा हृदय गति, रक्तचाप, पाचन, पेशाब और पसीना का नियंत्रण शामिल है।

परानुक्म्पी तन्त्रिका प्रणाली (पैरासिम्पेथेटिक सिस्टम) परानुक्म्पी तन्त्रिका प्रणाली, अनुकम्पी तन्त्रिका प्रणाली के ठीक विपरीत कार्य करती हैं। इसकी नसे प्राय: लम्बी तथा पतली होती हैं, लेकिन इन तन्त्रिकाओं में गुच्छक छोटे होते हैं । यह इन दोनों प्रणालीयों के विरोधात्मक प्रभाव के कारण ही शरीर के भीतर होने वाली सभी नित्यकर्म क्रियाएँ जिनसे मानव अनभिज्ञ रहता है, सामान्यत: सन्तुलित सुचारू रूप से चलती रहती है। यह प्रणाली नसों का एक नेटवर्क है जो तनाव या खतरे की अवधि के बाद शरीर को आराम देता है।

हृदय अतालता (कार्डिएक डिसरिथिमिया) कार्डिएक डिसरिथिमिया (अतालता) एक असामान्य या अनियमित दिल की धड़कन है। हृदय अतालता में दिल बहुत तेज या बहुत धीरे-धीरे धड़कता है या दिल की लय बाधित हो सकती है, जिससे ऐसा महसूस होगा कि धड़कन रुक-रुक कर चल रही है।
कार्डिएक डिसरिथिमिया और अरिथिमिया दोनों ही दिल की धड़कन की असामान्य लय को संदर्भित करते हैं। जबकि अतालता (अरिथिमिया) में दिल की धड़कन की लय बहुत तेज या बहुत धीमी होती है। वहीं डिस्रिथिमिया में दिल की धड़कन की दर अनियमित होती है, लेकिन यह सामान्य सीमा के भीतर ही रहती है।


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