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गर्भकालीन मधुमेह

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गर्भावस्था में मधुमेह के कारण


जब शरीर में पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन नहीं बन पाता, तब गर्भावधि मधुमेह होता है। अग्न्याशय में बीटा कोशिकाएं हार्मोन इंसुलिन का स्राव करती हैं। इंसुलिन शरीर में पैदा होने वाला वह हार्मोन है, जो शरीर में भोजन व ग्लूकोज को ऊर्जा में बदलता है। गर्भावस्था के दौरान विभिन्न हार्मोंस के स्तर में बढ़ोत्तरी होती है, जिससे शरीर में वजन बढ़ जाने जैसे कई बदलाव होते हैं। इन हार्मोंस के बढ़ने से शरीर में ब्लड शुगर का स्तर बिगड़ जाता है। इस स्थिति को इंसुलिन प्रतिरोधक कहा जाता है और इस कारण से शरीर को इंसुलिन की जरूरत और अधिक बढ़ जाती है।


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कुछ महिलाओं को गर्भावस्था के आखिरी महीनों में इंसुलिन प्रतिरोधक का सामना करना पड़ता है। वहीं कुछ महिलाओं में यह गर्भावस्था शुरू होने से पहले भी होता है। गर्भवती महिलाओं को खासकर मध्य गर्भावस्था के बाद बच्चे के विकास के लिये अतिरिक्त इंसुलिन बनानी पड़ती है। गर्भावस्था के शुरुआती चरणों में, एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन (प्लेसेंटा द्वारा स्रावित एक हार्मोन) का स्तर बढ़ जाता है। ये हार्मोन अग्नाशयी बीटा कोशिकाओं में वृद्धि करते हैं और बढ़ती मांगों को पूरा करने के लिए पर्याप्त स्तर के इंसुलिन के उत्पादन की सुविधा प्रदान करते हैं। यदि शरीर इस अतिरिक्त इंसुलिन की मांग को पूरा नहीं कर पाता, तो रक्त शर्करा का स्तर बढ़ जाएगा जिस से गर्भावधि मधुमेह का खतरा भी बढ़ जाता है।


यह स्थिति आमतौर पर गर्भावस्था के 20 से 24 सप्ताह के दौरान शुरू होती है। जैसे-जैसे गर्भावस्था आगे बढ़ती है, मानव कोरियोनिक सोमाटोमैमोट्रोपिन (hCS), प्रोलैक्टिन, प्रोजेस्टेरोन, कोर्टिसोल और एस्ट्रोजन के स्तर में वृद्धि होती है। परिधीय ऊतकों में इंसुलिन प्रतिरोध बनाता है। कोर्टिसोल और प्रोजेस्टेरोन में उच्च मधुमेहजन्य या इंसुलिन विरोधी गुण होते हैं।


जिन गर्भवती माताओं का अग्न्याशय सामान्य है तो वे बढ़ती मांगों को पूरा करने में सक्षम होती हैं। जिन गर्भवती महिलाओं के अग्नाशय की कार्य क्षमता सीमा रेखा पर होती हैं वे इंसुलिन उत्पादन में वृद्धि करने में असमर्थ होती हैं, जिसके परिणामस्वरूप गर्भकालीन मधुमेह होता है।


इन्सुलिन के प्रति प्रतिरोध का परिणाम यह भी होता है कि माँ अपनी कैलोरी आवश्यकता के लिए वसा या फैट का उपयोग करती है क्योंकि वह बढ़ते बच्चे के लिए ग्लूकोज को बचाती है। यह अतिरिक्त ग्लूकोज रक्त के साथ प्लेसेंटा या नाल के माध्यम से बढ़ते बच्चे में जाता है और इसके फलस्वरूप बढ़ते बच्चे में रक्त शर्करा का स्तर बढ़ जाता है। इस से बच्चे के अग्न्याशय में इंसुलिन का उत्पादन बढ़ाने के लिए उत्तेजना होती है और बच्चे को अधिक ऊर्जा प्राप्त होती है जो वसा के रूप में जमा हो जाती है।


उपरोक्त परिवर्तनों के अलावा, प्लेसेंटा द्वारा इन्सुलिनेज जैसे एंजाइमों का उत्पादन बढ़ जाता है जिससे इंसुलिन का क्षय होता है।


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