गर्भकालीन मधुमेह वह मधुमेह है, जो गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को प्रभावित करता है। मधुमेह एक ऐसी स्थिति है जहां खून में ग्लूकोज (चीनी) की मात्रा बहुत अधिक होती है। लेकिन गर्भावधि मधुमेह इंसुलिन की कमी के कारण नहीं होता है, बल्कि गर्भावस्था के दौरान उत्पादित हार्मोन के कारण होता है जो इंसुलिन की क्रिया को रोकता है। खून में ग्लूकोज की मात्रा इंसुलिन नामक एक हार्मोन द्वारा नियंत्रित होती है। कभी-कभी, गर्भावस्था के दौरान, कुछ महिलाओं के खून में ग्लूकोज का स्तर सामान्य से अधिक हो जाता है और उनका शरीर उन सभी कोशिकाओं में खून पहुंचाने के लिए पर्याप्त इंसुलिन का उत्पादन नहीं कर पाता है, जिस से खून में ग्लूकोज का स्तर बढ़ जाने से गर्भावधि मधुमेह हो जाता है।
इससे 4% गर्भवती महिलायें प्रभावित होती है और यह सबसे आम चयापचय विकारों में से एक माना जाता है।
डायबिटीज, जिसका आमतौर पर गर्भावस्था के दौरान पहली बार निदान किया जाता है, डिलीवरी या प्रसव के बाद भी बनी रह सकती है। गर्भावधि मधुमेह के परिणामस्वरूप, रक्त शर्करा का स्तर बहुत अधिक होता है। अलग-अलग व्यक्तियों में कार्बोहाइड्रेट असहिष्णुता की गंभीरता भिन्न-भिन्न हो सकती है।
गर्भावस्था एक ऐसी अवधि है जिसमें गर्भवती महिला की सावधानीपूर्वक निगरानी की आवश्यकता होती है, क्योंकि इसमें माँ और गर्भ के अंदर बढ़ते बच्चे दोनों की भलाई शामिल होती है। जिससे प्रसव पूर्व अवधि के दौरान होने वाली किसी भी प्रकार की जटिलताओं से तत्काल निपटा जा सके। गर्भवती महिला की गर्भावस्था को ठीक से सुनिश्चित करने के लिए नियमित जांच की जाती हैं और यदि महिला को गर्भावधि मधुमेह हो जाता हैं तो इसे नियंत्रित करने के लिये यह लाभदायक होगा ।
गर्भावधि मधुमेह आमतौर पर गर्भावस्था के दूसरे तिमाही के दौरान प्रकट होता है। आमतौर पर शिशु के जन्म के बाद गर्भावधि मधुमेह स्वयं ठीक हो जाती है। कुछ मामलों में प्रसव के पूर्व अनदेखे लेकिन मौजूद मधुमेह को जांच के दौरान पाया जाता है और ऐसे मामलों में, बच्चे के जन्म के बाद भी मधुमेह बना रहता है।
अध्ययनों से यह पता चला है कि जिन महिलाओं को गर्भावधि मधुमेह हुआ है, भविष्य में उनके मधुमेह होने की संभावनायें अधिक बढ़ जाती है। यह उनके बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) और अस्वास्थ्यकर जीवनशैली से अधिक संबंधित हो सकता है।